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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates समयसार ४२० जह बंधे चिंतंतो बंधणबद्धो ण पावदि विमोक्खं। तह बंधे चिंतंतो जीवो वि ण पावदि विमोक्खं ।। २९१ ।। यथा बन्धांश्चिन्तयन् बन्धनबद्धो न प्राप्नोति विमोक्षम। तथा बन्धांश्चिन्तयन् जीवोऽपि न प्राप्नोति विमोक्षम्।। २९१ ।। बन्धचिन्ताप्रबन्धो मोक्षहेतुरित्यन्ये, तदप्यसत; न कर्मबद्धस्य बन्धचिन्ताप्रबन्धो मोक्षहेतु:, अहेतुत्वात्, निगडादिबद्धस्य बन्धचिन्ताप्रबन्धवत्। एतेन कर्मबन्धविषयचिन्ताप्रबन्धात्मकविशुद्धधर्मध्यानान्धबुद्धयो बोध्यन्ते। जो बंधनों से बद्ध वो नहिं बंधचिंतासे छुटे । त्यों जीव भी इन बंधकी चिंता करे से नहिं छुटे ।। २९१ ।। गाथार्थ:- [ यथा] जैसे [ बन्धनबद्धः] बंधनोंसे बंधा हुआ पुरुष [ बन्धान् चिन्तयन् ] बंधोंका विचार करनेसे [ विमोक्षम् न प्राप्नोति] मुक्तिको प्राप्त नहीं करता ( अर्थात् बंधसे नहीं छूटता), [ तथा] इसीप्रकार [ जीवः अपि] जीव भी [ बन्धान् चिन्तयन् ] बंधोंका विचार करके [ विमोक्षम् न प्राप्नोति] मोक्षको प्राप्त नहीं करता। टीका:-अन्य कितने ही लोग यह कहते हैं कि 'बंध संबंधी विचारशृंखला मोक्षका कारण है' किन्तु यह भी असत् है; कर्मसे बँधे हुए (जीव) को बंध संबंधी विचारकी शृंखला मोक्षका कारण नहीं है, क्योंकि जैसे बेड़ी आदिसे बंधे हुए (पुरुष) को उस बंध संबंधी विचारशृंखला ( -विचारकी परंपरा) बंधसे छूटनेका कारण नहीं है उसीप्रकार कर्मसे बंधे हुए (पुरुष) की कर्मबंध संबंधी विचारशृंखला कर्मबंधसे मुक्त होनेका कारण नहीं है। इस (कथन) से, कर्मबंध संबंधी विचारशृंखलात्मक विशुद्ध (-शुभ ) धर्मध्यान से जिनकी बुद्धि अंध है, उन्हें समझाया जाता है। भावार्थ:-कर्मबंधकी चिंतामें मन लगा रहे तो भी मोक्ष नहीं होता। यह तो धर्मध्यानरूप शुभ परिणाम है। जो केवल (मात्र) शुभ परिणामसे ही मोक्ष मानते हैं उन्हें यहाँ उपदेश दिया है कि-शुभ परिणामसे मोक्ष नहीं होता। ___“ ( यदि बंधके स्वरूपके ज्ञानमात्रसे भी मोक्ष नहीं होता और बंधके विचार करनेसे भी मोक्ष नहीं होता) तब फिर मोक्षका कारण क्या है ?” ऐसा प्रश्न होनेपर अब मोक्षका उपाय बताते हैं: Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008303
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Spiritual
File Size3 MB
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