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________________ ४१४ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates समयसार अधः कर्माद्या: पुद्गलद्रव्यस्य य इमे दोषाः । कथं तान् करोति ज्ञानी परद्रव्यगुणास्तु ये नित्यम् ।। २८६ ।। अधः कर्मोद्देशिकं च पुद्गलमयमिदं द्रव्यं । कथं तन्मम भवति कृतं यन्नित्यमचेतनमुक्तम् ।। २८७ ।। च यथाधःकर्मनिष्पन्नमुद्देशनिष्पन्नं पुद्गलद्रव्यं निमित्तभूतमप्रत्याचक्षाणो नैमित्तिकभूतं बन्धसाधकं भावं न प्रत्याचष्टे, तथा समस्तमपि परद्रव्यमप्रत्याचक्षाणस्तन्निमित्तकं भावं न प्रत्याचष्टे। यथा चाध:कर्मादीन् पुद्गलद्रव्यदोषान्न नाम करोत्यात्मा परद्रव्यपरिणामत्वे सति आत्मकार्यत्वाभावात्, ततोऽधःकर्मोद्देशिकं च पुद्गलद्रव्यं न मम कार्य नित्यमचेतनत्वे सति मत्कार्यत्वाभावात्, -इति तत्त्वज्ञानपूर्वकं पुद्गलद्रव्यं निमित्तभूतं प्रत्याचक्षाणो नैमित्तिकभूतं बन्धसाधकं भावं प्रत्याचष्टे, तथा समस्तमपि परद्रव्यं प्रत्याचक्षाणस्तन्निमित्तं भावं प्रत्याचष्टे । एवं द्रव्यभावयोरस्ति निमित्तनैमित्तिकभावः। गाथार्थ:- [ अधःकर्माद्याः ये इमे ] अधःकर्म आदि जो यह [ पुद्गलद्रव्यस्य दोषाः ] पुद्गलद्रव्यके दोष हैं ( उनको ज्ञानी अर्थात् आत्मा करता नहीं है; ) [ तान् ] उनको [ज्ञानी] ज्ञानी अर्थात् आत्मा [ कथं करोति ] कैसे करे [ ये तु ] कि जो [ नित्यम् ] सदा [ परद्रव्यगुणाः ] परद्रव्यके गुण है ? इसलिये [अधःकर्म उद्देशिक च] अधःकर्म और उदेशिक [ इदं ] ऐसा यह [ पुद्गलमयम् द्रव्यं ] पुद्गलमय द्रव्य है ( जो मेरा किया नहीं होता; ) [ तत् ] वह [मम कृतं] मेरा किया [ कथं भवति ] कैसे हो [ यत् ] कि जो [नित्यम्] सदा [ अचेतनम् उक्तम् ] अचेतन कहा गया है ? टीका:-जैसे अधःकर्मसे उत्पन्न और उदेशसे उत्पन्न हुए निमित्तभूत (आहारादि) पुद्गलद्रव्य का प्रत्याख्यान न करता हुआ आत्मा ( - मुनि) नैमित्तिकभूत बंधसाधक भावका प्रत्याख्यान (त्याग) नहीं करता, इसीप्रकार समस्त परद्रव्यका प्रत्याख्यान न करता हुआ आत्मा उसके निमित्तसे होनेवाले भावको नहीं त्यागता। और, “ अध:कर्म आदि जो पुद्गलद्रव्यके दोषोंको आत्मा वास्तवमें नहीं करता क्योंकि वे परद्रव्यके परिणाम हैं इसलिये उन्हें आत्माके कार्यत्वका अभाव हैं, इसप्रकार अध:कर्म और उद्देशिक पुद्गलकर्म मेरा कार्य नहीं है क्योंकि वह नित्य अचेतन है इसलिये उसको मेरे कार्यत्वका अभाव है; " - इसप्रकार तत्त्वज्ञानपूर्वक निमित्तभूत पुद्गलद्रव्यका प्रत्याख्यान आत्मा ( - मुनि) जैसे नैमित्तिकभूत बंधसाधक भावका प्रत्याख्यान करता है, उसीप्रकार समस्त परद्रव्यका प्रत्याख्यान करता हुआ (त्याग करता हुआ) आत्मा उसके निमित्तसे होनेवाले भावका प्रत्याख्यान करता है। इसप्रकार द्रव्य और भावको निमित्त - नैमित्तिकता है। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008303
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Spiritual
File Size3 MB
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