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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates समयसार ३६८ ( पृथ्वी ) न कर्मबहुलं जगन्न चलनात्मकं कर्म वा न नैककरणानि वा न चिदचिद्वधो बन्धकृत्। यदैक्यमुपयोगभूः समुपयाति रागादिभिः स एव किल केवलं भवति बन्धहेतुर्नृणाम्।।१६४ ।। जह पुण सो चेव णरो णेहे सव्वम्हि अवणिदे संते रेणुबहुलम्मि ठाणे करेदि सत्थेहिं वायाम।। २४२ ।। छिंददि भिंददि य तहा तालीतलकयलिवंसपिंडीओ। सच्चित्ताचित्ताणं करेदि दव्वाणमुवघादं।। २४३ ।। श्लोकार्थ:- [ बन्धकृत् ] कर्मबंधको करनेवाला कारण , [ न कर्मबहुलं जगत् ] न तो बहु कर्मयोग्य पुद्गलोंसे भरा हुआ लोक है, [न चलनात्मकं कर्म वा] न चलनस्वरूप कर्म (अर्थात् मन-वचन-कायकी क्रियारूप योग) है, [न नैककरणानि] न अनेक प्रकारके करण हैं [ वा न चिद्-अचिद्-वधः ] और न चेतनअचेतनका घात है। किन्तु [ उपयोगभूः रागादिभिः यद्-ऐक्यम् समुपयाति ] ‘उपयोगभू' अर्थात् आत्मा रागादिके साथ जो एक्यको प्राप्त होता है [ सः एव केवलं] वही एकमात्र ( –मात्र रागादिकके साथ एकत्व प्राप्त करना वही-) [ किल] वास्तवमें [ नृणाम् बन्धहेतुः भवति ] पुरुषों के बंधकारण हैं। भावार्थ:-यहाँ निश्चयनयसे एकमात्र रागादिको ही बंधका कारण कहा है। १६४। सम्यग्दृष्टि उपयोगमें रागादि नहीं करता, उपयोगका और रागादिका भेद जानकर रागादिका स्वामी नहीं होता, इसलिये उसे पूर्वोक्त चेष्टासे बंध नहीं होता यह कहते हैं: जिस रीत फिर वो ही पुरुष, उस तैल सबको दूर कर । व्यायाम करत शस्त्रसे बहु रजभरे स्थानक ठहर ।। २४२।। अरु ताड़, कदली, बाँस आदिक, छिन्नभिन्न बहु करे । उपघात आप सचित्त अवरु, अचित्त द्रव्योंका करे ।। २४३।। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008303
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Spiritual
File Size3 MB
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