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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates निर्जरा अधिकार ३५७ उम्मग्गं गच्छंतं सगं पि मग्गे ठवेदि जो चेदा। सो ठिदिकरणाजुत्तो सम्मादिट्ठी मुणेदव्वो।। २३४ ।। उन्मार्ग गच्छन्तं स्वकमपि मार्गे स्थापयति यश्चेतयिता। स स्थितिकरणयुक्त: सम्यग्दृष्टितिव्यः ।। २३४ ।। यतो हि सम्यग्दृष्टि: टङ्कोत्कीर्णंकज्ञायकभावमयत्वेन मार्गात्प्रच्युतस्यात्मनो मार्गे एव स्थितिकरणात् स्थितिकारी, ततोऽस्य मार्गच्यवनकृतो नास्ति बन्धः, किन्तु निर्जरैव। जो कुणदि वच्छलत्तं तिण्हं साहूण मोक्खमग्गम्हि। सो वच्छलभावजुदो सम्मादिट्ठी मुणेदव्वो।। २३५ ।। उन्मार्ग जाते स्वात्मको भी, मार्गमें जो स्थापता। चिन्मूर्ति वो थितिकरणयुत, सम्यक्तदृष्टि जानना ।। २३४ ।। गाथार्थ:- [ यः चेतयिता] जो चेतयिता [ उन्मार्ग गच्छन्तं ] उन्मार्ग में जाते हुए [ स्वकम् अपि ] अपने आत्मा को भी [ मार्गे ] मार्गमें [ स्थापयति] स्थापित करता है, [सः ] वह [स्थितिकरणयुक्तः] स्थितिकरणयुक्त [स्थितिकरणगुण सहित] [ सम्यग्दृष्टि: ] सम्यग्दृष्टि [ ज्ञातव्यः ] जानना चाहिये। टीका:-क्योंकि सम्यग्दृष्टि , टंकोत्कीर्ण एक ज्ञायकभावमयताके कारण, यदि अपना आत्मा मार्गसे ( सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप मोक्षमार्गसे) च्युत हो तो उसे मार्गमें ही स्थित कर देता है, इसलिये स्थितिकारी ( स्थिति करनेवाला) है, अतः उसे मार्गसे च्युत होने के कारण होने वाला बंध नहीं किन्तु निर्जरा ही है। भावार्थ:-जो, अपने स्वरूपी मोक्षमार्गसे च्युत होते हुए अपने आत्माको मार्गमें ( मोक्षमार्गमें) स्थित करता है वह स्थितिकरणगुणयुक्त है। उसे मार्गसे च्युत होनेके कारण होनेवाला बंध नहीं होता किन्तु उदयागत कर्म रस देकर खिर जाते हैं इसलिये निर्जरा ही होती है। अब वात्सल्य गुणकी गाथा कहते हैं: जो मोक्षमार्गमें 'साधु 'त्रयका वत्सलत्व करे अहा! चिन्मूर्ति वो वात्सल्ययुत सम्यक्तदृष्टी जानना ।। २३५ ।। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008303
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Spiritual
File Size3 MB
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