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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates समयसार ३२४ को नाम भणेद्बुधः परद्रव्यं ममेदं भवति द्रव्यम्। आत्मानमात्मनः परिग्रहं तु नियतं विजानन्।। २०७ ।। यतो हि ज्ञानी, यो हि यस्य स्वो भावः स तस्य स्वः स तस्य स्वामी इति खरतरतत्त्वदृष्ट्यवष्टम्भात्, आत्मानमात्मन: परिग्रहं तु नियमेन विजानाति, ततो न ममेदं स्वं, नाहमस्य स्वामी इति परद्रव्यं न परिगृह्णाति। अतोऽहमपि न तत् परिगृह्णामि मझं परिग्गहो जदि तदो अहमजीवदं तु गच्छेज्ज। णादेव अहं जम्हा तम्हा ण परिग्गहो मज्झ।। २०८ ।। गाथार्थ:- [आत्मानम् तु] अपने आत्माको ही [ नियतं] नियमसे [ आत्मनः परिग्रहं ] अपना परिग्रह [ विजानन् ] जानता हुआ [क: नाम बुधः ] कौनसा ज्ञानी [ भणेत् ] यह कहेगा कि [ इदं परद्रव्यं ] यह परद्रव्य [ मम द्रव्यम् ] मेरा द्रव्य [ भवति] है ? टीका:-जो जिसका स्वभाव है वह उसका 'स्व' है और वह उसका (स्वभावका) स्वामी है-इसप्रकार सूक्ष्म तीक्ष्ण तत्त्वदृष्टिके आलंबनसे ज्ञानी (अपने) आत्माको ही नियमसे आत्माका परिग्रह जानता है, इसलिये “ यह मेरा 'स्व' नहीं है, मैं इसका स्वामी नहीं हूँ" ऐसा जानता हुआ परद्रव्यका परिग्रह नहीं करता (अर्थात् परद्रव्यको अपना परिग्रह नहीं करता)। भावार्थ:-यह लोकरीति है कि समझदार सयाना पुरुष परकी वस्तुको अपनी नहीं जानता, उसे ग्रहण नहीं करता। इसीप्रकार परमार्थज्ञानी अपने स्वभावको ही अपना धन जानता है. परके भावको अपना नहीं जानता, उसे ग्रहण नहीं करता। इसप्रकार ज्ञानी परका ग्रहण-सेवन नहीं करता। “इसलिये मैं भी परद्रव्यको ग्रहण नहीं करूँगा” इसप्रकार अब (मोक्षाभिलाषी जीव) कहता है: परिग्रह कभी मेरा बने, तो मैं अजीव बनूं अरे । मैं नियमसे ज्ञाता हि , इससे नहिं परिग्रह मुझ बने ।। २०८ ।। १। स्व = धन; मिल्कियत; अपनी स्वामित्व की चीज। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008303
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Spiritual
File Size3 MB
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