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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates पुण्य-पाप अधिकार २३५ कर्म अशुभं कुशीलं शुभकर्म चापि जानीथ सुशीलम्। कथं तद्भवति सुशीलं यत्संसारं प्रवेशयति।।१४५ ।। शुभाशुभजीवपरिणामनिमित्तत्वे सति कारणभेदात्, शुभाशुभपुद्गलपरिणाममयत्वे सति स्वभावभेदात्, शुभाशुभफलपाकत्वे सत्यनुभवभेदात्, शुभाशुभमोक्षबन्धमार्गाश्रितत्वे सत्याश्रयभेदात् चैकमपि कर्म किञ्चिच्छुभं किञ्चिदशुभमिति केषाञ्चित्किल पक्षः। स तु सप्रतिपक्षः। तथाहि-शुभोऽशुभो वा जीवपरिणाम: केवलाज्ञानमयत्वादेकः, तदेकत्वे सति कारणाभेदात् एकं कर्म। शुभोऽशुभो वा पुद्गलपरिणामः केवलपुद्गलमयत्वादेकः, तदेकत्वे सति स्वभावाभेदादेकं कर्म। शुभोऽशुभो वा फलपाक: केवलपुद्गलमयत्वादेकः, तदेकत्वे सत्यनुभवाभेदादेकं कर्म। शुभाशुभौ मोक्षबन्धमार्गौ तु प्रत्येकं केवलजीवपुद्गलमयत्वादनेकौ, गाथार्थ:- [अशुभं कर्म ] अशुभ कर्म [ कुशीलं] कुशील है (-बुरा है) [अपि च] और [ शुभकर्म ] शुभ कर्म [ सुशीलम् ] सुशील है (-अच्छा है) ऐसा [ जानीथ ] तुम जानते हो! [ तत् ] वह [ सुशीलं ] सुशील [ कथं ] कैसे [ भवति ] हो सकता है [ यत् ] जो [ संसारं] ( जीवको) संसारमें [ प्रवेशयति] प्रवेश कराता है ? __टीका:-किसी कर्ममें शुभ जीवपरिणाम निमित्त होनेसे और किसीमें अशुभ जीवपरिणाम निमित्त होनेसे कर्मके कारणोंमें भेद होता है; कोई कर्म शुभ पुद्गलपरिणाममय और कोई अशुभ पुद्गलपरिणाममय होनेसे कर्मके स्वभावमें भेद होता है; किसी कर्म का शुभ फलरूप और किसीका अशुभफलरूप विपाक होनेसे कर्मके अनुभवमें (–स्वादमें) भेद होता है; कोई कर्म (शुभ (अच्छे) मोक्षमार्गके) आश्रित होनेसे और कोई कर्म अशुभ (बुरे) बंधमार्गके आश्रित होने कर्मके आश्रयमें भेद होता है। (इसलिये) यद्यपि ( वास्तवमें) कर्म एक ही है तथापि-कई लोगोंका ऐसा पक्ष है कि कोई कर्म शुभ है और कोई अशुभ है। परंतु वह (पक्ष) प्रतिपक्ष सहित है। वह प्रतिपक्ष ( अर्थात् व्यवहारपक्षका निषेध करनेवाला निश्चयपक्ष) इस प्रकार है: ___ शुभ या अशुभ जीवपरिणाम केवल अज्ञानमय होनेसे एक हैं; और उनके एक होनेसे कर्मके कारणोंमें भेद नहीं होता; इसलिये कर्म एक ही है। शुभ या अशुभ पुदगलपरिणाम केवल पुद्गलमय होनेसे एक है; उसके एक होनेसे कर्मके स्वभावमें भेद नहीं होता; इसलिये कर्म एक ही है। शुभ या अशुभ फलरूप होनेवाला विपाक केवल पुद्गलमय होनेसे एक है; उसके एक होनेसे कर्मके अनुभवमें (-स्वादमें) भेद नहीं होता; इसलिये कर्म एक ही है। शुभ ( अच्छे) मोक्षमार्ग केवल जीवमय है और अशुभ (बुरे) बंधमार्ग केवल पुदगलमय है इसलिये वे अनेक ( -भिन्न भिन्न, दो) हैं; और उनके अनेक होने पर भी कर्म केवल पुद्गलमय-बंधमार्गके ही आश्रित होनेसे कर्मके आश्रयमें भेद नहीं है; इसलिये कर्म एक ही है। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008303
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Spiritual
File Size3 MB
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