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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates कर्ता-कर्म अधिकार ( उपजाति) एकस्य दुष्टो न तथा परस्य चिति द्वयोर्द्वाविति पक्षपातौ । यस्तत्त्ववेदी च्युतपक्षपात स्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव ।। ७३ ।। ( उपजाति) एकस्य कर्ता न तथा परस्य चिति द्वयोर्द्वाविति पक्षपातौ । यस्तत्त्ववेदी च्युतपक्षपात स्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव ।। ७४ ।। ( उपजाति) एकस्य भोक्ता न तथा परस्य चिति द्वयोर्द्वाविति पक्षपातौ। यस्तत्त्ववेदी च्युतपक्षपातस्तस्यास्ति नित्यं खलु चिचिदेव।। ७५ ।। २१७ [ खलु चित् एव अस्ति ] चित्स्वरूप ही है । ७२। श्लोकार्थ :- [ दुष्टः ] जीव द्वेषी है [ एकस्य ] ऐसा एक नयका पक्ष है और [न तथा ] जीव द्वेषी नहीं है [ परस्य ] ऐसा दूसरे नयका पक्ष है; [ इति ] इसप्रकार [चिति ] चित्स्वरूप जीवके सम्बन्धमें [ द्वयोः ] दो नयोंके [ द्वौ पक्षपातौ ] दो पक्षपात हैं। [ यः तत्त्ववेदी च्युतपक्षपातः ] जो तत्त्ववेत्ता पक्षपातरहित है [ तस्य ] उसे [ नित्यं ] निरंतर [ चित् ] चित्स्वरूप जीव [ खलु चित् एव अस्ति ] चित्स्वरूप ही है । ७३ । श्लोकार्थ :- [ कर्ता ] जीव कर्ता है [ एकस्य ] ऐसा एक नयका पक्ष है और [न तथा ] जीव कर्ता नहीं है [ परस्य ] ऐसा दूसरे नयका पक्ष है; [ इति ] इसप्रकार [चिति ] चित्स्वरूप जीवके सम्बन्धमें [ द्वयोः ] दो नयोंके [ द्वौ पक्षपातौ ] दो पक्षपात हैं । [ य: तत्ववेदी च्युतपक्षपातः ] जो तत्त्ववेत्ता पक्षपातरहित है [ तस्य ] उसे [ नित्यं ] निरंतर [ चित् ] चित्स्वरूप जीव [ खलु चित् एव अस्ति ] चित्स्वरूप ही है । ७४ । श्लोकार्थ :- [ भोक्ता ] जीव भोक्ता [ एकस्य ] ऐसा एक नयका पक्ष है और [न तथा ] जीव भोक्ता नहीं है [ परस्य ] ऐसा दूसरे नयका पक्ष है; [ इति ] इसप्रकार [चिति ] चित्स्वरूप जीवके सम्बन्धमें [ द्वयोः ] दो नयोंके [ द्वौ पक्षपातौ ] दो पक्षपात हैं। [ यः तत्त्ववेदी च्युतपक्षपातः ] जो तत्त्ववेत्ता पक्षपातरहित है [ तस्य ] उसे Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008303
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Spiritual
File Size3 MB
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