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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates कर्ता-कर्म अधिकार यदि कर्मणि स्वयमबद्धः सन् जीवः क्रोधादिभावेन स्वयमेव न परिणमेत तदा स किलापरिणाम्येव स्यात्। तथा सति संसाराभावः। अथ पुद्गलकर्म क्रोधादि जीवं क्रोधादिभावेन परिणामयति ततो न संसाराभाव इति तर्कः। किं स्वयमपरिणममानं परिणममानं वा पुद्गलकर्म क्रोधादि जीवं क्रोधादिभावेन परिणामयेत् ? न तावत्स्वयमपरिणममानः परेण परिणमयितुं पार्येत; न हि स्वतोऽसती शक्तिः कर्तुमन्येन पार्यते। स्वयं परिणममानस्तु न परं परिणमयितारमपेक्षेत; न हि वस्तुशक्तयः परमपेक्षन्ते। ततो जीवः परिणामस्वभावः स्वयमेवास्तु। तथा सति गरुडध्यानपरिणत: साधक: स्वयं गरुड इवाज्ञानस्वभावक्रोधादिपरिणतोपयोगः स एव स्वयं क्रोधादिः स्यात्। इति सिद्धं जीवस्य परिणामस्वभावत्वम्। टीका:-यदि जीव कर्ममें स्वयं न बँधाता हुआ क्रोधादिभावमें स्वयमेव नहीं परिणमता हो तो वह वास्तवमें अपरिणामी ही सिद्ध होगा। और ऐसा होनेसे संसार का अभाव होगा। यदि यहाँ यह तर्क किया जाये कि “पुद्गलकर्म जो क्रोधादिक हैं वे जीवको क्रोधादिभावरूप परिणमाते हैं इसलिये संसारका अभाव नहीं होता", तो उसका निराकरण दो पक्ष लेकर इसप्रकार किया जाता है:-पुद्गलकर्म क्रोधादिक है वह स्वयं अपरिणमते हुए जीवको क्रोधादिभावरूप परिणमाता है या स्वयं परिणमते हुए को ? प्रथम, स्वयं अपरिणमते परके द्वारा नहीं परिणमाया जा सकता; क्योंकि ( वस्तुमें) जो शक्ति स्वतः न हो उसे अन्य कोई नहीं कर सकता। और स्वयं परिणमते हुए को तो अन्य परिणमानेवाले की अपेक्षा नहीं होती; क्योंकि वस्तकी शक्तियाँ परकी अपेक्षा नहीं रखती। (इसप्रकार दोनों पक्ष असत्य हैं।) इसलिये जीव परिणमनस्वभाववाला स्वयमेव हो। ऐसा होनेसे , जैसे, गरुड़के ध्यानरूप परिणमित मंत्रसाधक स्वयं गरुड़ है उसीप्रकार, अज्ञानस्वभावयुक्त क्रोधादिरूप जिसका उपयोग परिणमित हुआ है ऐसा जीव ही स्वयं क्रोधादि है। इसप्रकार जीवका परिणामस्वभावत्व सिद्ध हुआ। भावार्थ:-जीव परिणामस्वभाव है। जब अपना उपयोग क्रोधादिरूप परिणमता है तब स्वयं क्रोधादिरूप ही होता है ऐसा जानना। अब इस अर्थका कलशरूप काव्य कहते हैं: Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008303
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Spiritual
File Size3 MB
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