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________________ १४८ इत्याह Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates समयसार जीवपुद्गलपरिणामयोरन्योऽन्यनिमित्तमात्रत्वमस्ति तथापि न तयोः कर्तृकर्मभाव जीवपरिणामहेदुं कम्मत्तं पोग्गला परिणमति । पोग्गलकम्मणिमित्तं तहेव जीवो वि परिणमदि ।। ८० ।। ण वि कुव्वदि कम्मगुणे जीवो कम्मं तहेव जीवगुणे । अण्णोण्णणिमित्तेण दु परिणामं जाण दोण्हं पि ।। ८१ ।। एदेण कारणेण दु कत्ता आदा सएण भावेण । पोग्गलकम्मकदाणं ण दु कत्ता सव्वभावाणं ।। ८२ ।। जीवपरिणामहेतुं कर्मत्वं पुद्गलाः परिणमन्ति । पुद्गलकर्मनिमित्तं तथैव जीवोऽपि परिणमति ।। ८० ।। नापि करोति कर्मगुणान् जीवः कर्म तथैव जीवगुणान्। अन्योऽन्यनिमित्तेन तु परिणामं जानीहि द्वयोरपि ।। ८१ ।। एतेन कारणेन तु कर्ता आत्मा स्वकेन भावेन । पुद्गलकर्मकृतानां न तु कर्ता सर्वभावानाम् ।। ८२ ।। भावार्थ:-भेदज्ञान होनेके बाद, जीव और पुद्गलमें कर्ताकर्मभाव है ऐसी बुद्धि नहीं रहती; क्योंकि जबतक भेदज्ञान नहीं होता तबतक अज्ञानसे कर्ताकर्मभावकी बुद्धि होती है। यद्यपि जीवके परिणाम और पुद्गलके परिणामके अन्योन्य (परस्पर) निमित्तमात्रता है तथापि उनके कर्ताकर्मपना नहीं है ऐसा अब कहते हैं: जीवभावहेतु पाय पुद्गल, कर्मरूप जु परिणमे । पुद्गलकरमकेनिमित्तसे, यह जीव भी त्यों परिणमे ।। ८० ।। जीव कर्मगुण करता नहीं, नहिं जीवगुण कर्म हि करे । अन्योन्यके हि निमित्तसे परिणाम दोनों के बने ।। ८१ ।। इस हेतुसे आत्मा हुआ, कर्ता स्वयं निज भाव ही । पुद्गलकरमकृत सर्व भावोंका कभी कर्ता नहीं ।। ८२ ।। गाथार्थ:- [ पुद्गलाः] पुद्गल [ जीवपरिणामहेतुं ] जीवके परिणामके निमित्तसे [ कर्मत्वं ] कर्मरूपमें [ परिणमन्ति ] परिणमित होते हैं, [ तथा एव ] तथा [ जीवः अपि ] जीव भी [ पुद्गलकर्मनिमित्तं ] पुद्गलकर्मके निमित्तसे Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008303
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Spiritual
File Size3 MB
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