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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates समयसार १४० यः खलु मोहरागद्वेषसुखदुःखादिरूपेणान्तरुत्प्लवमानं कर्मणः परिणाम स्पर्शरसगन्धवर्णशब्दबन्धसंस्थानस्थौल्यसौक्ष्म्यादिरूपेण बहिरुत्प्लवमानं नोकर्मण: परिणामं च समस्तमपि परमार्थत: पुद्गलपरिणामपुद्गलयोरेव घटमृत्तिकयोरिव व्याप्यव्यापकभाव सद्भावात्पुद्गलद्रव्येण का स्वतन्त्रव्यापकेन स्वयं व्याप्यमानत्वात्कर्मत्वेन क्रियमाणं पुद्गलपरिणामात्मनोर्घटकुम्भकारयोरिव व्याप्यव्यापकभावाभावात् कर्तृकर्मत्वासिद्धौ न नाम करोत्यात्मा, किन्तु परमार्थतः पुद्गलपरिणामज्ञानपुद्गलयोर्घटकुम्भकारवव्याप्य व्यापकभावाभावात कर्तृकर्मत्वासिद्धावात्मपरिणामात्मनोर्घटमृत्तिकयोरिव व्याप्यव्यापकभावसद्भावादात्मद्रव्येण क; स्वतन्त्रव्यापकेन स्वयं व्याप्यमानत्वात्पुद्गलपरिणामज्ञानं कर्मत्वेन कुर्वन्तमात्मानं जानाति सोऽत्यन्तविविक्तज्ञानीभूतो ज्ञानी स्यात्। न चैवंज्ञातुः पुद्गलपरिणामो व्याप्यः, पुद्गलात्मनोज्ञेयज्ञायकसम्बन्ध टीका:-निश्चयसे मोह, राग, द्वेष, सुख, दुःख आदिरूपसे अंतरंगमें उत्पन्न होता हुआ जो कर्मका परिणाम, और स्पर्श, रस, गंध, वर्ण, शब्द , बंध, संस्थान, स्थूलता, सूक्ष्मता आदिरूपसे बाहर उत्पन्न होता हुआ जो नोकर्मका परिणाम, वह सब ही पुद्गलपरिणाम है। परमार्थसे, जैसे घड़ेके और मिट्टीके व्याप्यव्यापकभावका सद्भाव होनेसे कर्ताकर्मपना है उसीप्रकार पुद्गलपरिणामके और पुद्रलके ही व्याप्यव्यापकभावका सद्भाव होनेसे कर्ताकर्मपना है। पुद्गलद्रव्य स्वतंत्र व्यापक है इसलिये पुद्गलपरिणामका कर्ता है और पुद्गलपरिणाम उस व्यापक से स्वयं व्याप्त होने के कारण कर्म है। इसलिये पुद्गलद्रव्यके द्वारा कर्ता होकर कर्मरूपसे किया जाने वाला जो समस्त कर्मनोकर्मरूप पुद्गलपरिणाम है उसे जो आत्मा, पुद्गलपरिणामको और आत्माको घट और कुम्हारकी भाँति व्याप्यव्यापकभावके अभावके कारण कर्ताकर्मपनेकी असिद्धि होनेसे , परमार्थसे करता नहीं है, परंतु ( मात्र) पुद्गलपरिणामके ज्ञानको (आत्माके) कर्मरूपसे करता हुआ अपने आत्माको जानता है, वह आत्मा (कर्म-नोकर्मसे) अत्यंत भिन्न ज्ञानस्वरूप होता हुआ ज्ञानी है। (पुद्गलपरिणामका ज्ञान आत्माका कर्म किस प्रकार है ? सो समझाते हैं:-) परमार्थसे पुद्गलपरिणामके ज्ञानको और पुद्गलको घट और कुम्हारकी भाँति व्याप्यव्यापकभावका अभाव होनेसे कर्ताकर्मपनेकी असिद्धि है और जैसे घड़े और मिट्टीके व्याप्यव्यापकभावका सद्भाव होनेसे कर्ता-कर्मपना है। उसीप्रकार आत्मपरिणाम और आत्मा के व्याप्यवापक भाव का सद्भाव होनेसे कर्ताकर्मपना है। आत्म द्रव्य स्वतंत्र व्यापक होने से आत्मपरिणामका अर्थात् पुद्गलपरिणामके ज्ञानका कर्ता है और पुद्गलपरिणामका ज्ञान उस व्यापक से स्वयं व्याप्य होनेसे कर्म है। और इसप्रकार (ज्ञाता पुद्गलपरिणामका ज्ञान करता है इसलिये ) ऐसा भी नहीं है कि पुद्गलपरिणाम ज्ञाताका व्याप्य है; क्योंकि पुद्गल और आत्माके ज्ञेयज्ञायकसंबंधका व्यवहारमात्रे सत्यपि पुद्गलपरिणामनिमित्तकस्य ज्ञानस्यैव ज्ञातुर्व्याप्यत्वात्। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008303
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Spiritual
File Size3 MB
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