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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates कर्ता-कर्म अधिकार १३१ यतो यथा ज्ञानभवने ज्ञानं भवद्विभाव्यते न तथा क्रोधादिरपि; यत्तु क्रोधादेर्भवनं तन्न ज्ञानस्यापि भवनं , यतो यथा क्रोधादिभवने क्रोधादयो भवन्तो विभाव्यन्ते न तथा ज्ञानमपि। इत्यात्मन: क्रोधादीनां च न खल्वेकवस्तुत्वम्। इत्येवमात्मात्मास्रवयोर्विशेषदर्शनेन यदा भेदं जानाति तदास्यानादिरप्यज्ञानजा कर्तृकर्मप्रवृत्तिनिवर्तते; तन्निवृत्तावज्ञाननिमित्तं पुद्गलद्रव्यकर्मबन्धोऽपि निवर्तते। तथा सति ज्ञानमात्रादेव बन्धनिरोधः सिध्येत्। कथं ज्ञानमात्रादेव बन्धनिरोध इति चेत्णादूण आसवाणं असुचित्तं च विवरीयभावं च। दुक्खस्स कारणं ति य तदो णियत्तिं कुणदिं जीवो।।७२ ।। तथा ज्ञान जो होना–परिणमना है सो क्रोधादिका भी होना–परिणमना नहीं है, क्योंकि ज्ञानके होते (-परिणमनेके) समय जैसे ज्ञान होता हुआ मालूम पड़ता है उसीप्रकार क्रोधादिक भी होते हुए मालूम नहीं पड़ते; और क्रोधादिका जो होना-परिणमना वह ज्ञानका भी होना-परिणमना नहीं है, क्योंकि क्रोधादिके होनेके ( -परिणमनेके) समय जैसे क्रोधादिक होते हुए मालूम पड़ते हैं वैसे ज्ञान भी होता हुआ मालूम नहीं पड़ता। इसप्रकार आत्मा और क्रोधादिके निश्चयसे एकवस्तुत्व नहीं। इसप्रकार आत्मा और आस्रवोंका विशेष (-अन्तर) देखनेसे जब यह आत्मा उनका भेद ( भिन्नता) जानता है तब इस आत्माके अनादि होनेपर भी अज्ञानसे उत्पन्न हुई ऐसी (परमें) कर्ताकर्मकी प्रवृत्ति निवृत्त होती है; उसकी निवृत्ति होनेपर अज्ञानके निमित्तसे होता हुवा पौद्गलिक द्रव्यकर्मका बंध भी निवृत्त होता है। ऐसा होनेपर, ज्ञानमात्रसे ही बंधका निरोध सिद्ध होता है। भावार्थ:-क्रोधादिक और ज्ञान भिन्न भिन्न वस्तुएं हैं; न तो ज्ञानमें क्रोधादि हैं और न क्रोधादिमें ज्ञान है, ऐसा उनका भेदज्ञान हो तब उनका एकत्वरूपका अज्ञान नाश होता है और अज्ञानके नाश हो जाने से कर्मका बंध भी नहीं होता। इसप्रकार ज्ञानसे ही बंधका निरोध होता है। अब पूछता है कि ज्ञानमात्रसे ही बंधका निरोध कैसे होता है ? उसका उत्तर कहते हैं: अशुचिपना, विपरीतता वे आस्रवोंका जानके। अरु दु:खकारण जानके, इनसे निवर्तन जीव करे।। ७२।। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008303
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Spiritual
File Size3 MB
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