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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates समयसार अध्यात्मरससे भरे हुये मधुर कलश, अध्यात्मरसिकोंके हृदयके तार को झनझना देते हैं। अध्यात्म कवि रूपमें श्री अमृतचन्द्राचार्यदेवका जैन साहित्यमें अद्वितीय स्थान है। समयसार में भगवान् कुन्दकुन्दआचार्यदेवने प्राकृतमें ४१५ गाथाओं की रचना की है। उसपर श्री अमृतचन्द्राचार्यदेवने आत्मख्यातिनाम की और श्री जयसेनाचार्यदेवने तात्पर्यवृत्ति नामकी संस्कृत टीका लिखी है। श्री पंडित जयचन्द्रजीने मूल गाथाओंका और आत्मख्यातिका हिन्दीमें भाषान्तर किया और उसमें स्वयंने थोड़ा भावार्थ भी लिखा है। वह पुस्तक 'समयप्राभृत' के नाम से विक्रम सं० १९६४ में प्रकाशित हुई। उसके बाद उस पुस्तकको पंडित मनोहरलालजीने प्रचलित हिन्दी में परिवर्तित किया और श्री परमश्रुतप्रभावक मंडल श्रीमद् राजचन्द्र ग्रन्थमाला द्वारा ‘समयसार' के नाम से विक्रम सं० १९७५ में प्रकाशित हुवा। उस हिन्दी ग्रन्थके आधारसे, उसी प्रकार संस्कृत टीका के शब्दों तथा आशय से चिपटे रह कर यह गुजराती अनुवाद तैयार किया गया है। यह अनुवाद करने का महा भाग्य मुझे प्राप्त हुवा यह मुझे अत्यन्त हर्ष का कारण है। परमपूज्य श्री कानजी स्वामी की छत्रछायामें इस गहन शास्त्रका अनुवाद हूवा है। अनुवाद करने की समस्त शक्ति मुझे पूज्यपाद श्री गुरुदेव के पास से ही मिली है। मेरी मार्फत अनुवाद हुवा इससे ‘यह अनुवाद मैंने किया है' ऐसा व्यवहारसे भले ही कहा जावे, परन्तु मुझे मेरी अल्पज्ञाता का पूरा ज्ञान होनेसे और अनुवाद की सर्व शक्ति का मूल पूज्य श्रीगुरुदेव ही होने से मैं तो बराबर समझता हूँ कि श्रीगुरुदेवकी अमृतवाणी का तीव्र वेग ही उनके द्वारा मिला हुवा अनमोल उपदेश हीयथाकाल इस अनुवादरूप में परिणमा है। जिसके बल पर ही इस अति गहन शास्त्रके अनुवाद करने का मैंने साहस किया था और जिनकी कृपा से ही यह निर्विघ्न पूरा हुवा है उन परम उपकारी श्रीगुरुदेव के चरणारविंदमें अति भक्तिभाव से वंदन करता इस अनुवाद में अनेक भइयोंकी मदद है। भाई श्री अमृतलाल झाटकियाकी इसमें सबसे ज्यादा मदद है। उन्होंने सम्पूर्ण अनुवाद का अति परिश्रम करके बहुत ही सूक्ष्मतासे और उत्साहसे संशोधन किया है, बहुत सी अति उपयोगी सूचनाएँ उन्होंने बताईं, संस्कृत टीका की हस्त लिखित प्रतियोंका मिलान कर पठान्तरोंको ढूँढ़ कर दिया, शंका-स्थलोंका समाधान पण्डितजनों से बुलाकर दिया - आदि अनेक प्रकार से उन्होंने जो सर्वतोनुखी सहायता की है उसके लिये मैं उनका अत्यन्त आभारी हूँ। अपने विशाल शास्त्रज्ञान में, इस अनुवाद में पड़नेवाली छोटी मोटी दिक्कतोंको दूर कर देनेवाले माननीय श्री वकील रामजीभाई माणिकचन्द दोशीका मैं हृदय पूर्वक आभार मानता हूँ। इसके अनन्तर भी जिन जिन भाइयों की इस अनुवाद में सहायता है उन सब का भी मैं आभारी हूँ। यह अनुवाद भव्य जीवोंको जिनदेव द्वारा प्ररूपित आत्म शांति का यथार्थ मार्ग बतावें, यह मेरी अन्तर की भावना है, श्री अमृतचन्द्राचार्यदेवके शब्दोंमें यह Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008303
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Spiritual
File Size3 MB
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