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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates समयसार यद्येवं तर्हि किंलक्षणोऽसावेकष्टोत्कीर्णः परमार्थजीव इति पृष्टः प्राह अरसमरूवमगंधं अव्वत्तं चेदणागुणमसदं। जाण अलिंगग्गहणं जीवमणिद्दिट्ठसंठाणं ।। ४९ ।। अरसमरूपमगन्धमव्यक्तं चेतनागुणमशब्दम्। जानीहि अलिङ्गग्रहणं जीवमनिर्दिष्टसंस्थानम्।। ४९ ।। यः खलु पुद्गलद्रव्यादन्यत्वेनाविद्यमानरसगुणत्वात्, पुद्गलद्रव्यगुणेभ्यो भिन्नत्वेन स्वयमरसगुणत्वात्, परमार्थतः पुद्गलद्रव्यस्वामित्वाभावादद्रव्येन्द्रियावष्टम्भेनारसनात्, स्वभावतः क्षायोपशमिकभावाभावाद्भावेन्द्रियावलम्बेनारसनात्, सकलसाधारणैकसंवेदनपरिणामस्वभावत्वात्केवलरसवेदनापरिणामापन्नत्वेनारसनात्, सकलज्ञेयज्ञायकतादात्म्यस्य अब शिष्य पूछता है कि यह अध्यवसानादि भाव जीव नहीं हैं तो एक, टंकोत्कीर्ण, परमार्थस्वरूप जीव कैसा है ? उसका लक्षण क्या है ? इस प्रश्नका उत्तर कहते हैं: जीव चेतनागुण, शब्द-रस-रूप-गंध-अक्तिविहीन है। निर्दिष्ट नहि संस्थान उसका, ग्रहण नहिं है लिंग से।। ४९ ।। गाथार्थ:-हे भव्य! तू [ जीवम् ] जीवको [अरसम्] रसरहित, [अरूपम् ] रूपरहित, [अगन्धम् ] गंधरहित, [अव्यक्तं ] अव्यक्त अर्थात् इंद्रियगोचर नहीं ऐसा, [ चेतनागुणम् ] चेतना जिसका गुण है ऐसा, [ अशब्दम् ] शब्दरहित, [ अलिङ्गग्रहणं] किसी चिहसे न ग्रहण होने वाला और [ अनिर्दिष्टसंस्थानम् ] जिसका कोई आकार नहीं कहा जाता ऐसा [ जानीहि ] जान। टीका:- जीव निश्चयसे पुद्गलद्रव्यसे भिन्न है इसलिये उसमें रसगुण विद्यमान नहीं है अत: वह अरस है। १। पुद्गलद्रव्यके गुणोंसे भी भिन्न होनेसे स्वयं भी रसगुण नहीं है इसलिये अरस है। २। परमार्थसे पुद्गलद्रव्यका स्वामित्व भी उसके नहीं है इसलिये वह द्रव्येन्द्रियके आलंबन से भी रस नहीं चखता अतः अरस है। ३। अपने स्वभावकी दृष्टिसे देखा जाये तो उसके क्षायोपशमिक भावका भी अभाव होनेसे वह भावेन्द्रियके आलंबनसे भी रस नहीं चखता इसलिये अरस है। ४। समस्त विषयोंके विशेषोंमें साधारण ऐसे एक ही संवेदनपरिणामरूप उसका स्वभाव होनेसे वह केवल एक रसवेदनापरिणामको पाकर रस नहीं चखता इसलिये अरस है। ५। ( उसे समस्त ज्ञेयोंका ज्ञान होता है परंतु) सकल ज्ञेयज्ञायकके तादात्म्यका Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008303
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Spiritual
File Size3 MB
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