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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates जीव- अजीव अधिकार यद्यध्यवसानादयः पुद्गलस्वभावास्तदा कथं जीवत्वेन सूचिता इति चेत् ववहारस्स दरीसणमुवएसो वण्णिदो जिणवरेहिं । जीवा दे सव्वे अज्झवसाणादओ भावा ।। ४६ ।। व्यवहारस्य दर्शनमुपदेशो वर्णितो जिनवरैः । जीवा एते सर्वेऽध्यवसानादयो भावाः ।। ४६ ।। सर्वे एवैतेऽध्यवसानादयो भावाः जीवा इति यद्भगवद्भिः सकलज्ञैः प्रज्ञप्तं तदभूतार्थस्यापि व्यवहारस्यापि दर्शनम् । व्यवहारो हि व्यवहारिणां म्लेच्छभाषेव म्लेच्छानां परमार्थप्रतिपादकत्वादपरमार्थोऽपि तीर्थप्रवृत्तिनिमित्तं दर्शयितुं न्याय्य एव। तमन्तरेण तु शरीराज्जीवस्य परमार्थतो भेददर्शनात्त्रसस्थावराणां भस्मन ९३ भावार्थ:- जब कर्मोदय आता है तब वह आत्मा दुःखरूप परिणमित होता है और दुःखरूप भाव है वह अध्यवसान है इसलिये दुःखरूप भावोंमें ( -अध्यवसानमें ) चेतनताका भ्रम उत्पन्न होता है । परमार्थसे दुःखरूप भाव चेतन नहीं हैं, कर्मजन्य हैं इसलिये जड़ ही हैं। अब प्रश्न होता है कि यदि अध्यवसानादि भाव हैं तो पुद्गलस्वभाव हैं तो सर्वज्ञके आगममें उन्हें जीवरूप क्यों कहा गया है ? उसके उत्तर स्वरूप गाथासूत्र कहते हैं: व्यवहार ये दिखला दिया, जिनदेवके उपदेशमें। ये सर्व अध्यवसान आदिक, भावको जँह जिव कहे ।। ४६ ।। गाथार्थ:- [ एते सर्वे ] यह सब [ अध्यवसानादयः भावाः ] अध्यवसानादि भाव [ जीवाः ] जीव हैं इसप्रकार [ जिनवरै: ] जिनेन्द्रदेव ने [ उपदेशः वर्णितः] जो उपदेश दिया है सो [ व्यवहारस्य दर्शनम् ] व्यवहारनय दिखाया है। टीका:-यह सब अध्यवसानादि भाव जीव हैं ऐसा जो भगवान सर्वज्ञदेवने कहा है वह, यद्यपि व्यवहारनय अभूतार्थ है तथापि, व्यवहारनयको भी बताया है; क्योंकि जैसे म्लेच्छोंकी म्लेच्छभाषा वस्तुस्वरूप बतलाती है उसी प्रकार व्यवहारनय व्यवहारी जीवोंको परमार्थका कहनेवाला है इसलिये, अपरमार्थभूत होनेपर भी, धर्मतीर्थकी प्रवृत्ति करने के लिये वह ( व्यवहारनय) बतलाना न्यायसंगत ही है। परंतु यदि व्यवहारनय न बताया जाये तो, परमार्थसे ( - निश्चयनयसे) शरीरसे जीव को भिन्न बताया जाने पर भी, जैसे भस्मको मसल देनेसे हिंसाका अभाव है उसी प्रकार, Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008303
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Spiritual
File Size3 MB
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