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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates जीव-अजीव अधिकार अप्पाणमयाणंता मूढा दु परप्पवादिणो केई। जीवं अज्झवसाणं कम्मं च तहा परूवेंति।।३९ ।। अवरे अज्झवसाणेसु तिव्वमंदाणुभागगं जीवं। मण्णंति तहा अवरे णोकम्मं चावि जीवो त्ति।। ४० ।। कम्मस्सुदयं जीवं अवरे कम्माणुभागमिच्छंति। तिव्वत्तणमंदत्तणगुणेहिं जो सो हवदि जीवो।। ४१ ।। जीवो कम्मं उहयं दोण्णि वि खलु केइ जीवमिच्छति। अवरे संजोगेण दु कम्माणं जीवमिच्छंति।।४२ ।। एवंविहा बहुविहा परमप्पाणं वदंति दुम्मेहा। ते ण परमट्ठवादी णिच्छयवादीहिं णिहिट्ठा।। ४३ ।। ऐसा ज्ञान विलास करता है। भावार्थ:-यह ज्ञानकी महिमा कही। जीव-अजीव एक होकर रंगभूमिमें प्रवेश करते हैं उन्हें यह ज्ञान ही भिन्न जानता है। जैसे नृत्यमें कोई स्वांग धरकर आये और उसे जो यथार्थरूपमें जान ले ( पहचान ले) तो वह स्वांगकर्ता उसे नमस्कार करके अपने रूपको जैसा का तैसा ही कर लेता है उसीप्रकार यहाँ भी समझना। ऐसा ज्ञान सम्यग्दृष्टि पुरुषोंको होता है; मिथ्यादृष्टि इस भेदको नहीं जानते।। ३३ ।। अब जीव-अजीवका एकरूप वर्णन करते हैं:--- को मूढ़ , आत्म अजान जो, पर आत्मवादी जीव है, 'है कर्म, अध्यवसान ही जीव' यों हि वो कथनी करे।। ३९ ।। अरु कोई अध्यवसानमें अनुभाग तीक्षण-मंद जो। उसको ही माने आत्मा, अरु अन्य को नोकर्मको।।४०।। को अन्य माने आत्मा बस, कर्म के ही उदयको । को तीव्रमंदगुणोंसहित, कर्मोही के अनुभागको।। ४१।। को कर्म आत्मा, उभय मिलकर जीवकी आशा धरें। को कर्मके संयोगसे, अभिलाष आत्मा की करें ।। ४२।। दुर्बुद्धि यों ही और बहुविध , आतमा परको कहै । वे सर्व नहिं परमार्थवादी, ये हि निश्चयविद कहै ।। ४३।। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008303
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Spiritual
File Size3 MB
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