SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates समयसार प्रकाशकीय निवेदन (पंचमावृत्ति) आत्मकल्याणका स्पष्ट मार्ग बतलानेवाला परमागम श्री समयसारजी शास्त्र अद्वितीय जगतचक्षु है जिसकी महिमा अपार है। वर्तमान धर्मक्रान्ति युगमें इस शास्त्र का श्रवण, मनन और निदिध्यासन द्वारा सत्य समझने का उत्साह प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। समयसारजी दैवीशास्त्र-भागवत शास्त्र है इसलिये उसका पारायण [ पठन - पाठन] करना तत्त्वजिज्ञासुओंके लिये नित्य कर्तव्य है। श्री अमृतचन्द्राचार्यकृत टीका सर्वोत्तम अध्यात्म टीका है। उसमें श्री कुन्दकुन्दाचार्यका हार्द विशदरूपसे खोला गया है। अनादि मोहरूप अज्ञान के कारण जो जीव अत्यन्त अप्रतिबुद्ध हो वह भी ज्ञानी का अभिप्राय समझनेमें अत्यन्त सावधान हो जावे ऐसी अनुपम शैली है। पवित्र रसमय शान्तिदायक अपूर्व जीवन कैसे प्राप्त हो यह बात समयसार द्वारा समझने का प्रयत्न करने वालोंकी संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है यह इसका सूचक है और यही सच्ची धर्म प्रभावना है। परमोपकारी पज्य सत्परुष श्री कानजीस्वामी के इस शास्त्रके ऊपर अत्यन्त सूस्पष्ट और सुबोध प्रवचन द्वारा धर्म जिज्ञासुओंको अपूर्व यथार्थ समाधान प्राप्त हो रहा है। जो चीज पूर्व में अनंत काल में दुर्लभ थी वही चीज स्वामीजी ने जिज्ञासु पात्र जीवोंके लिये सुगम-सुलभ कर दी है। जो मध्यस्थ होकर प्रत्यक्ष समागम द्वारा यथार्थता, स्वतन्त्रता और वीतरागता ग्रहण करने का प्रयत्न करेगा उसके लिये आत्मकल्याण करने का यह उत्तम अवसर है। श्री परमागम मंदिर में संगमरमरमें जो मूल गाथाएँ उत्कीर्ण हो गई हैं उनके अनुसार इस आवृत्ति में मूल गाथाओंमें संशोधन किया गया है। चतुर्थ आवृत्ति के अनुसार संस्कृत श्लोकोंका हिन्दी अर्थ देते हुए बीच–बीचमें वे संस्कृत शब्द भी कौंस में दिये गये हैं जिनका वह अर्थ है। इन दोनों कार्यों में ब्र. श्री चन्दुलालजी ने अत्यन्त सावधानी पूर्वक परिश्रम किया है अतः हम उनका आभार मानते हैं। ___ श्री नेमीचन्दजी बाकलीवाल [ मालिक--कमल प्रिन्टर्स, मदनगंज-किशनगढ़ ] ने उत्तम ढंग से यह ग्रन्थ छाप दिया है, इसके लिये हम उनका भी अभार मानते हैं। ___पाठकों से प्रार्थना है कि इस शास्त्रका नयविभाग द्वारा सुचारुरूपसे अभ्यास कर त्रैकालिक ज्ञायक स्वभावी निजात्मा के आश्रय से ही शुद्धता की प्राप्तिका सतत् प्रयत्न करें। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008303
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Spiritual
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy