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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates षष्ठ - सम्यग्दर्शन अधिकार [३९१ कोई हिंसा के अनेक आरम्भ, हिंसा के व्यापार बहुत अभिमान लोभी होकर करते हैं। कोई आमद-खरच लिखने के काम करते हैं; कोई अनेक चित्र बनाते हैं; कोई पत्थर, ईंट पकाते हैं, कोई मकान बनाते हैं। कोई जुआ खेलते हैं, कोई वेश्यावृत्ति कराते हैं; कोई शराब पीने-पिलाने का कार्य करते हैं; कोई राज्य की नौकरी करते हैं; कोई नीचों की नौकरी करते हैं; कोई गायन विद्या से जीविका करते हैं; कोई बाजे बजाते हैं, कोई नृत्य करते हैं, कर्म के वश में पड़े हुए अनेक प्रकार के कष्टों में मनुष्य पर्याय को व्यतीत करते हैं। पुण्यपाप के आधीन होकर अनेक मनुष्य अनेक प्रकार के कर्म करते हुए प्रत्यक्ष ही अनेक प्रकार का फल भोगते हुये दिखाई देते हैं। कोई अनाज आदि बेचकर जीविका करते हैं, कोई गुड़, शक्कर, घी, तेल, आदि की आजीविका करते हैं; कोई कपड़े का , कोई सोने-चाँदी का, कोई हीरा-मोती, मणि-माणिक आदि के व्यापार से आजीविका करते हैं। कोई लोहा-पीतल इत्यादि धातु की, कोई लकड़ी-पत्थर की, कोई मेवा-मिठाई, पुआ-घेवर–मोदक आदि की, कोई अनेक व्यजंनअनेक औषधियाँ इत्यादि कर्म के अधीन अनेक प्रकार की जीविका करते हैं। ___ कोई व्यापारी हैं, कोई नौकर हैं, कोई दलाल है, कोई उद्यमी हैं, कोई निरुद्यमी हैं, कोई आलसी हैं; कोई मनमाने कपड़े आभूषण पहिनते हैं; कोई बहुत कष्ट से पेट भरते हैं; कोई कष्ट रहित सुखिया हुए भोजन करते हैं; कोई दूसरों के घर जाकर याचक बनकर भोजन करते हैं; कोई पुज्य गुरु बनकर भोजन करते हैं, कोई रंक दीन होकर भोजन करते है, कोई अनेक रस सहित भोजन करते हैं; कोई नीरस भोजन करते हैं, कोई पेट भर अनेकबार भोजन करते हैं; कोई साधारण नीरस भोजन से आधा पेट ही भर पाते हैं किसी को एक दिन के अन्तर से मिलता है, किसी को दो दिन के अन्तर से मिलता है, किसी को तीन दिन के अन्तर से बड़ी मुश्किल से मिलता है, किसी को भोजन नहीं मिलने से भूख प्यास की वेदना से मरण हो जाता कोई बंदीघर में पराधीन पड़े घोर वेदना सहते हैं, कोई अपने हितैषी के वियोग से दुःखी हैं, कोई पूरी जिन्दगी भर रोग जनित घोर वेदना भोगते हुए बहुत दुःखी होकर मर जाते हैं। कोई बुखार, खांसी, श्वास, अतिसार की वेदना भोगते हैं। कोई अनेक प्रकार की वायु की, पित्त की, उदर विकार की, जलोदर-कठोदर आदि की वेदना भोगते हैं। कोई कर्णशूल, दन्तशूल, नेत्रशूल, मस्तकशूल , उदरशूल की घोर वेदना भोगते हुए मर जाते है। कोई जन्म से अन्धे, बहरे, गूंगे होते हैं तथा कोई हाथ-पैर आदि अंगों से विकल होकर जन्म पूरा करते हैं। कोई कितनी ही आयु बीत जाने पर अंधे होकर, बहरे होकर, लूले होकर, लंगड़े होकर, पागल होकर, पराधीन होकर मानसिक व शारीरिक घोर दुःख भोगते हैं। कितने ही की रुधिरविकार से कोढ़ , खाज, पैर में दाद आदि से अंगुलियाँ गल जाती हैं, हाथ गल जाते हैं, नाक पैर आदि गल जाते हैं और दुःख भोगते रहते हैं। कर्म के उदय की गहन गति है। कोई अन्तराय के उदय से निर्धन होकर अनेक दुःख भोगते है; कभी पेट भरता है कभी नहीं भरता है, कभी नीरस भोजन गला हुआ-सड़ा हुआ बहुत कष्ट से Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008300
Book TitleRatnakarandak Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorMannulal Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year2000
Total Pages527
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, & Religion
File Size6 MB
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