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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates चतुर्थ - सम्यग्दर्शन अधिकार ] [१४३ हुक्का त्याग : हुक्का की महामलिनता, दुर्गन्ध, तमाखू और धुंआ के योग से पानी में जीवों की उत्पत्ति हो जाती है। जहाँ भी हुक्का का पानी गिर जाये वहाँ छहकाय के जीवों का घात होता है। इसकी दुर्गन्ध से उत्तम आचरण के धारक पास में बैठ नहीं सकते हैं। हुक्का पीनेवाला बार-बार घर-घर में अग्नि ढूंढता फिरता है, घर में राख का बर्तन रखा ही रहता है। हुक्का तो नीच कुलवाले नीच लोगों के पीने योग्य है, हुक्का पीनेवाले को गाड़ीवान, घोड़े का नौकर, मीना, गूजर, मुसलमान इत्यादि की संगति ही अच्छी लगती है। वह उत्तम कुलवालों के योग्य नहीं है। यदि हुक्का नहीं मिले तो नाई, धोबी, गूजर, मीना, तेली, तमोली, मुसलमान आदि से चिलम मांगकर पी लेता है। यदि नहीं पीवे तो बड़ा रोग-बीमारी पैदा हो जाती है, पेट में अफरा चढ़ जाता है. नीहार बंद हो जाता है। हक्का पीनेवाले ने तो बडी मसीबत गले बांध ली है जिसके कारण वह व्रत, संयम उपवास, स्वाध्याय आदि सभी उत्तम कार्यों को तिलाजंलि दे देता है। जरदा त्याग : जर्दा महान् अपवित्र वस्तु है। इसे खानेवाले मुख में रखकर मल-मूत्र कर पाते हैं। चलते रास्ते में सड़क पर मल-मूत्र आदि के ऊपर जुते पहने ही जर्दा खा लेता है। मांस भक्षी शराब पीनेवालों के तथा नीच जाति के घर का पानी मिल आ कत्थाचूना खा लेता है। नीच जाति के लोग अपने हाथों को बिना धोये ही नीचे के (अधो) अंगों को खुजला कर जरदा मसल कर दे देते हैं तो भी यह खा लेता है। जॅठन की भी नहीं करता है। सभी सोने का स्थान , बैठने का स्थान , कोना, बारी, जाली आदि सब जगह थंक-थंक कर गंदगी से लिप्त कर देता है। पशु भी रास्ते में चलते हुए सोते हुए मुख नहीं चलाता है। जर्दा खानेवाले को पशु से भी अधिक विकलता है। इसके मुख में हमेशा महादुर्गन्ध रहती है। जर्दा की पीक जहाँ गिरता है वहाँ मक्खी, मच्छर, डांस, मकड़ी, कीड़ा, कीड़ी, बड़े-बड़े त्रसजीव भी मर जाते हैं, पाँचों स्थावरों का घात तो वहाँ होता ही है। इसके व्रत, संयम, उपवास, स्वाध्याय, जाप, शुद्ध-भावना का भी नाश हो जाता है। __जरदा खानेवालों की बुद्धि आत्मा के हित में नहीं प्रवर्तती है, संयम के योग्य नहीं रहती है। उसमें दया, क्षमा, शील, संतोष, इंद्रिय विजय के परिणाम कभी नहीं होते हैं। अनेक पापाचार कपट, छल में उसकी बुद्धि प्रवीण हो जाती है। अनेक व्यसनों में लग जाता है। जरदा खानेवाले को मांगने में शर्म नहीं लगती हैं। सभी नीच जाति के लोगों से भी मांगकर खा लेता है। शराब मांस खानेवाले जिस समय शराब पीते हैं, हुक्का पीते हैं, यह उनके हाथ का दिया जरदा-बीड़ी मांग-मांग कर खाता-पीता रहता है। जरदा खानेवाले बहुत मनुष्यों को अच्छी तरह से निकट से देखा है - एक के भी परमार्थ की बुद्धि , परलोक सुधारने की बुद्धि ही नहीं होती है। इस जरदे के प्रभाव से हीन आचरण बढ़ जाता है तथा उसकी बुद्धि, परमार्थ से भ्रष्ट होकर लौकिक लोगों की तरह छल में, व्यभिचार में, लोभ में प्रबल हो जाती है। जरदा खानेवाले को सच्चा धर्म नहीं हो सकता है। इस प्रकार अपने परिणाम में आप स्वयं देख सकते हैं, अनुभव कर सकते हैं। दूसरे जरदा खानेवालों का स्वरूप भी Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008300
Book TitleRatnakarandak Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorMannulal Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year2000
Total Pages527
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, & Religion
File Size6 MB
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