SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 98
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates ५४] [ मोक्षमार्गप्रकाशक विचार नहीं रहता। तथा जिस इष्ट वस्तुकी प्राप्ति हुई है उसकी अनेक प्रकारसे रक्षा करता है। यदि इष्ट वस्तुकी प्राप्ति न हो या इष्टका वियोग हो तो स्वयं संतापवान होता है, अपने अंगोंका घात करता है तथा विष आदिसे मर जाता है। - ऐसी अवस्था लोभ होनेपर होती है। इस प्रकार कषायोंसे पीड़ित हुआ इन अवस्थाओंमें प्रवर्तता है। तथा इन कषायोंके साथ नोकषाय होती हैं। वहाँ जब हास्यकषाय होती है तब स्वयं विकसित प्रफुल्लित होता है; वह ऐसा जानना जैसे सन्निपातके रोगीका हँसना, नानारोगोंसे स्वयं पीड़ित है तो भी कोई कल्पना करके हँसने लग जाता है। इसी प्रकार यह जीव अनेक पीड़ा सहित है; तथापि कोई झूठी कल्पना करके, अपनेको सुहाता कार्य मानकर हर्ष मानता है, परमार्थतः दुःखी होता है। सुखी तो कषाय-रोग मिटने पर होगा। तथा जब रति उत्पन्न होती है तब इष्ट वस्तुमें अति आसक्त होता है। जैसे बिल्ली चूहेको पकड़कर आसक्त होती है, कोई मारे तो भी नहीं छोड़ती; सो यहाँ कठिनतासे प्राप्त होनेके कारण तथा वियोग होनेके अभिप्रायसे आसक्तता होती है, इसलिये दुःख ही है। तथा जब अरति उत्पन्न होती है तब अनिष्ट वस्तुका संयोग पाकर महा व्याकुल होता है। अनिष्टका संयोग हुआ वह स्वयंको सुहाता नहीं है, वह पीड़ा सही नहीं जाती, इसलिये उसका वियोग करनेको तड़पता है; वह दुःख ही है। तथा जब शोक उत्पन्न होता है तब इष्टका वियोग और अनिष्टका संयोग होनेसे अति व्याकुल होकर संताप पैदा करता है, रोता है, पुकार करता है, असावधान हो जाता है, अपने अंगका घात करके मर जाता है; कुछ सिद्धि नहीं है तथापि स्वयं ही महा दुःखी होता है। तथा जब भय उत्पन्न होता है तब किसीको इष्ट वियोग व अनिष्ट संयोगका कारण जानकर डरता है, अतिविहल होता है भागता है, छिपता है, शिथिल होजाता है, कष्ट होनेके स्थान पर पहुंच जाता है व मर जाता है; सो यह दुःखरूप ही है। तथा जब जुगुप्सा उत्पन्न होती है तब अनिष्ट वस्तुसे घृणा करता है। उसका तो संयोग हुआ और यह घृणा करके भागना चाहता है या उसे दूर करना चाहता है और खेदखिन्न होकर महा दुःख पाता है। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008265
Book TitleMoksh marg prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTodarmal Pandit
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1983
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy