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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates दूसरा अधिकार] [४१ इस प्रकार मोह के उदय से मिथ्यात्व और कषायभाव होते हैं, सो ये ही संसार के मूल कारण हैं। इन्हीं से वर्तमान काल में जीव दुःखी है, और आगामी कर्मबन्ध के भी कारण ये ही हैं। तथा इन्हीं का नाम राग-द्वेष-मोह है। वहाँ मिथ्यात्वका नाम मोह है; क्योंकि वहाँ सावधानी का अभाव है। तथा माया, लोभ, कषाय एवं हास्य, रति और तीन वेदों का नाम राग है; क्योंकि वहाँ इष्टबुद्धि से अनुराग पाया जाता है। तथा क्रोध, मान, कषाय और अरति, शोक, भय, जुगुप्साओंका नाम द्वेष है; क्योंकि वहाँ अनिष्टबुद्धि से द्वेष पाया जाता है। तथा सामान्यत: सभी का नाम मोह है; क्योंकि इनमें सर्वत्र असावधानी पायी जाती है। अंतरायकर्मोदयजन्य अवस्था तथा अंतराय के उदयसे जीव चाहे सो नहीं होता। दान देना चाहे सो नहीं दे सकता, वस्तु की प्राप्ति चाहे सो नहीं होती, भोग करना चाहे सो नहीं होता, उपभोग करना चाहे सो नहीं होता, अपनी ज्ञानादि शक्ति को प्रगट करना चाहे सो प्रगट नहीं हो सकती। इस प्रकार अंतराय के उदय से जो चाहता है सो नहीं होता, तथा उसी क्षयोपशम से किंचित्मात्र चाहा हुआ भी होता है। चाह तो बहुत है, परन्तु किंचित्मात्र दान दे सकता है, लाभ होता है, ज्ञानादिक शक्ति प्रगट होती है; वहाँ भी अनेक बाह्य कारण चाहियें। इस प्रकार घाति कर्मों के उदय से जीव की अवस्था होती है। वेदनीयकर्मोदयजन्य अवस्था तथा अघातिकर्मों में वेदनीय के उदय से शरीर में बाह्य सुख-दुःख के कारण उत्पन्न होते हैं। शरीर में आरोग्यपना, शक्तिवानपना इत्यादि तथा क्षुधा, तृषा, रोग, खेद , पीड़ा इत्यादि सुख-दुःख के कारण होते हैं। बाह्य में सुहावने ऋतु-पवनादिक, इष्ट स्त्रीपुत्रादिक तथा मित्र-धनादिक; असुहावने ऋतु-पवनादिक, अनिष्ट स्त्री-पुत्रादिक तथा शत्रु, दारिद्रय, वध-बन्धनादिक सुख-दुःख को कारण होते हैं। यह जो बाह्य कारण कहे हैं उनमें कितने कारण तो ऐसे हैं जिनके निमित्त से शरीर की अवस्था सुख-दुःख को कारण होती है, और वे ही सुख-दुःख को कारण होते हैं तथा कितने कारण ऐसे हैं जो स्वयं ही सुख-दुःख को कारण होते हैं। ऐसे कारणों का मिलना वेदनीय उदय से होता है। वहाँ सातावेदनीय से सुख के कारण मिलते हैं और असातावेदनीय से दुःख के कारण मिलते हैं। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008265
Book TitleMoksh marg prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTodarmal Pandit
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1983
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
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