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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates आध्यात्मिक-ज्ञान से कोई सम्बन्ध नहीं रहा। जैन साधना के इस बाह्य आडम्बर - क्रियाकाण्ड, भट्टारकवाद, शिथिलाचार आदिका उन्होंने तलस्पर्शी और विद्वत्तापूर्ण खण्डन किया है। इसके पूर्व बनारसीदास इसका खण्डन कर चुके थे; परन्तु पंडितजी ने जिस चिंतन, तर्क-वितर्क, शास्त्र-प्रमाण , अनुभव और गहराईसे विचार किया है वह ठोस, प्रेरणापद, विश्वसनीय एवं मौलिक है। इस दृष्टि से उन्हें एक ऐसा विशुद्ध आध्यात्मिक चिंतक कहा जाता है जो हिन्दी-जैन-साहित्य के इतिहास में ही नहीं, बल्कि प्राकृत व अपभ्रंशमें भी पिछले एक हजार वर्षों में नहीं हुआ। टीकाकार होते हुए भी पंडितजी ने गद्य शैलीका निमार्ण स्वयं किया। उनकी शैली दृष्टांतयुक्त प्रश्नोत्तरमयी तथा सुगम है। वे ऐसी शैली को अपनाते हैं जो न तो एकदम शास्त्रीय है और न आध्यात्मिक सिद्धियों और चमत्कारोंसे बोझिल। उनकी इस शैली का सर्वोत्तम निर्वाह मोक्षमार्गप्रकाशक में है। तत्कालीन स्थितिमें गद्य को आध्यात्मिक चिन्तन का माध्यम बनाना बहुत ही सूझ-बूझ और श्रमका कार्य था। उनकी शैली में उनके चिंतकका चरित्र और तर्कका स्वभाव स्पष्ट झलकता है। एक आध्यात्मिक लेखक होते हुए भी उनकी गद्यशैली में व्यक्तित्व का प्रक्षेप उनकी मौलिक विशेषता है। उनकी शैली की एक विशेषता यह है कि प्रश्न भी उनके होते हैं और उत्तर भी उनके। पूर्व प्रश्न के समाधान में अगला प्रश्न उभर कर आ जाता है। इसप्रकार विषय का विवेचन अंतिम बिन्दु तक पहुँचने पर ही वह प्रश्न समाप्त होता है। उनके गद्य शैली की एक मौलिकता यह है कि वे प्रत्यक्ष उपदेश न देकर अपने पाठक के सामने वस्तुस्थितिका चित्रण और उसका विश्लेषण इस तरह करते हैं कि उसे अभीष्ट निष्कर्ष पर पहुँचना ही पड़ता है। एक चिकित्सक रोगके उपचारमें जिस प्रक्रिया को अपनाता है, पंडितजीकी शैलीमें भी वह प्रक्रिया देखी जा सकती है। उनकी शैली तर्कवितर्कमूलक होते हुए भी अनुभूतिमूलक है। कभी-कभी वे मनोवैज्ञानिक तर्कों से भी काम लेते हैं। उनके तर्कमें कठमुल्लापन नहीं है। उनकी गद्यशैली में उनका अगाध पाण्डित्य एवं आस्था सर्वत्र प्रतिबिम्बित है। उनकी प्रश्नोत्तर शैली आत्मीय है, क्योंकि उसमें प्रश्नकर्ता और समाधान कर्ता एक ही है। उसमें शास्त्रीय और लौकिक जीवनसे सम्बन्धित दोनों प्रकार की समस्याओं का विवेचन है। दृष्टांत उनकी शैली में मणि-कांचन योगसे चमकते हैं। दृष्टांतोंके प्रयोग में पंडितजी का सूक्ष्म-वस्तु निरीक्षण प्रतिबिम्बित है। जीवन के और शास्त्रके प्रत्येक क्षेत्र से उन्होंने उदाहरण चुने हैं, लोकोक्तियोंका भी प्रयोग मिलता है। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008265
Book TitleMoksh marg prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTodarmal Pandit
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1983
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
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