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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates परिशिष्ट ४ उपादान-निमित्तकी चिट्ठी [कविवर पं० बनारसीदासजी लिखित] प्रथम ही कोई पूछता है कि निमित्त क्या, उपादान क्या ? उसका विवरण – निमित्त तो संयोगरूप कारण, उपादान वस्तु की सहज शक्ति। उसका विवरण - एक द्रव्यार्थिक निमित्त-उपादान, एक पर्यायार्थिक निमित्तउपादान। उसका विवरण - द्रव्यार्थिक निमित्त-उपादान गुणभेदकल्पना, पर्यायार्थिक निमित्तउपादान परयोगकल्पना। उसकी चौभंगी। प्रथम ही गुणभेदकल्पना की चौभंगी का विस्तार कहता हूँ। सो किस प्रकार ? इसप्रकार सुनो - जीवद्रव्य, उसके अनंत गुण, सब गुण असहाय स्वाधीन सदाकाल। उनमें दो गुण प्रधान मुख्य स्थापित किये; उसपर चौभंगी का विचार - एकतो जीव का ज्ञानगुण, दूसरा जीवका चारित्रगुण। ये दोनोंगुण शुद्धरूप भाव जानने, अशुद्धरूप भी जानने, यथायोग्य स्थानक मानने। उसका विवरण - इन दोनों कि गति न्यारी-न्यारी, शक्ति न्यारी-न्यारी, जाति न्यारी-न्यारी, सत्ता न्यारी-न्यारी। उसका विवरण – ज्ञानगुण की तो ज्ञान-अज्ञानरूप गति, स्व-पर प्रकाशक शक्ति, ज्ञानरूप तथा मिथ्यारूप जाति, द्रव्यप्रमाण सत्ता; परन्तु एक विशेष इतना - कि ज्ञानरूप जाति का नाश नहीं है. मिथ्यात्वरूप जाति का नाश सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति होने पर; - यह तो ज्ञानगुण का निर्णय हुआ। अब चारित्रगुणका विवरण कहते हैं – संक्लेश विशुद्धरूप गति, थिरता-अस्थिरता शक्ति , मंद-तीव्ररूप जाति , द्रव्यप्रमाण सत्ता; परन्तु एक विशेष कि मन्दताकी स्थिति चौदहवें गुणस्थान पर्यंत है, तीव्रताकी स्थिति पाँचवें गुणस्थान पर्यंत है। अब तो दोनोंका गुणभेद न्यारा-न्यारा किया। अब इनकी व्यवस्था - न ज्ञान चारित्र के आधीन है, न चारित्र ज्ञान के आधीन है; दोनों असहायरूप हैं। यह तो मर्यादाबंध है। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008265
Book TitleMoksh marg prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTodarmal Pandit
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1983
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
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