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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates नौवाँ अधिकार ] [ ३०९ भवितव्ययोगसे वह कार्य सिद्ध हो जाये तो तत्काल अन्य आकुलता मिटानेके उपायमें लगता है। इसप्रकार आकुलता मिटानेकी आकुलता निरन्तर बनी रहती है। यदि ऐसी आकुलता न रहे तो वह नये-नये विषय सेवनादि कार्योंमें किसलिये प्रवर्त्तता है ? इसलिये संसार अवस्था में पुण्य के उदय से इन्द्र-अहमिन्द्रादि पद प्राप्त करे तो भी निराकुलता नहीं होती, दुःखी ही रहता है। इसलिये संसार अवस्था हितकारी नहीं है। तथा मोक्षअवस्थामें किसी भी प्रकार की आकुलता नहीं रही, इसलिये आकुलता मिटानेका उपाय करने का भी प्रयोजन नहीं है; सदाकाल शांतरससे सुखी रहते हैं, इसलिये मोक्षअवस्था ही हितकरी है। पहले भी संसार अवस्थाके दुःखका और मोक्षअवस्थाके सुख का विशेष वर्णन किया है, वह इसी प्रयोजन के अर्थ किया है। उसे भी विचार कर मोक्षको हितरूप जान कर मोक्षका उपाय करना । सर्व उपदेशका तात्पर्य इतना है। पुरुषार्थसे ही मोक्षप्राप्ति वहाँ प्रश्न है कि मोक्षका उपाय काललब्धि आने पर भवितव्यानुसार बनता है, या मोहादिके उपशमादि होने पर बनता है, या अपने पुरुषार्थसे उद्यम करने पर बनता है सो कहो। यदि प्रथम दोनों कारण मिलने पर बनता है, तो हमे उपदेश किसलिये देते हो ? और पुरुषार्थसे बनता है तो उपदेश सब सुनते हैं, उनमें कोई उपाय कर सकता है, कोई नहीं कर सकता; सो कारण क्या ? समाधान :- एक कार्य होनेमें अनेक कारण मिलते हैं । सो मोक्षका उपाय बनता है वहाँ तो पूर्वोक्त तीनों ही कारण मिलते हैं, और नहीं बनता वहाँ तीनों ही कारण नहीं मिलते। पूर्वोक्त तीन कारण कहे उनमें काललब्धि व होनहार तो कोई वस्तु नहीं है, जिस काल में कार्य बनता है वही काललब्धि, और जो कार्य हुआ वही होनहार। तथा जो कर्मके उपशमादिक हैं वह पुद्गल की शक्ति है उसका आत्मा कर्त्ता - हर्त्ता नहीं है । तथा पुरुषार्थ से उद्यम करते हैं सो यह आत्मा का कार्य है; - इसलिये आत्मा को पुरुषार्थसे उद्यम करनेका उपदेश देते हैं। वहाँ यह आत्मा जिस कारणसे कार्यसिद्धि अवश्य हो उस कारणरूप उद्यम करे, वहाँ तो अन्य कारण मिलते ही मिलते हैं, और कार्य की भी सिद्धि होती ही होती है। तथा जिस कारण से कार्य की सिद्धि हो अथवा नहीं भी हो, उस कारणरूप उद्यम करे, वहाँ अन्य कारण मिलें तो कार्यसिद्धि होती है, न मिले तो सिद्धि नहीं होती। सो जिनमतमें जो मोक्षका उपाय कहा है, इससे मोक्ष होता ही होता है। इसलिये जो जीव पुरुषार्थसे जिनेश्वरके उपदेशानुसार मोक्षका उपाय करता है उसके काललब्धि व Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008265
Book TitleMoksh marg prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTodarmal Pandit
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1983
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
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