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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates पंडित टोडरमलजी आध्यात्मिक साधक थे। उन्होंने जैन दर्शन और सिद्धान्तोंका गहन अध्ययन ही नहीं किया, अपितु उसे तत्कालीन जन भाषा में लिखा भी है। इसमें उनका मुख्य उद्देश्य अपने दार्शनिक चिंतनको जन साधारण तक पहुँचाना था। पंडितजी प्राचीन जैन ग्रन्थों की विस्तृत, गहन परन्तु सुबोध भाषा-टीकाएँ लिखीं। इन भाषाटीकाओंमें कई विषयों पर बहुत ही मौलिक विचार मिलते हैं, जो उनके स्वतन्त्र चिन्तनके परिणाम थे। बाद में इन्हीं विचारों के आधार पर उन्होंने कतिपय मौलिक ग्रन्थों की रचना भी की। उनमें से सात तो टीका ग्रन्थ हैं और पाँच मौलिक रचनाएँ हैं। उनकी रचनाओंको दो भागों में बांटा जा सकता है : (१) मौलिक रचनाएँ (२) व्याख्यात्मक टीकाएँ मौलिक रचनाएँ गद्य और पद्य दोनों रूपोंमें हैं। गद्य रचनाएँ चार शैलियों में मिलती हैं – (क) वर्णात्मक शैली (ख) पत्रात्मक शैली (ग) यंत्र-रचनात्मक [ चाट] शैली (घ) विवेचनात्मक शैली वर्णात्मक शैली में समोसरण आदिका सरल भाषा में सीधा वर्णन है। पंडितजीके पास जिज्ञासु लोग दूर-दूर से अपनी शंकाएँ भेजते थे, उनके समाधान में वह जो कुछ लिखते थे, वह लेखन पत्रात्मक शैली के अंतर्गत आता है। इसमें तर्क और अनुभूतिका सुन्दर समन्वय है। इन पत्रोंमें एक पत्र बहुत महत्वपूर्ण है। सोलह पृष्ठीय यह पत्र 'रहस्यपूर्ण चिट्ठी' के नाम से प्रसिद्ध है। यंत्र-रचनात्मक शैली में चार्टी द्वारा विषय को स्पष्ट किया गया है। 'अर्थसंदृष्टि अधिकार' इसी प्रकार की रचना है। विवेचनात्मक शैलीमें सैद्धान्तिक विषयोंको प्रश्नोत्तर पद्धतिमें विस्तृत विवेचन करके युक्ति व उदाहरणों से स्पष्ट किया गया है। ‘मोक्षमार्गप्रकाशक' इसी श्रेणी में आता है। पद्यात्मक रचनाएँ दो रूप में उपलब्ध हैं : (१) भक्तिपरक (२) प्रशस्तिपरक भक्तिपरक रचनाओंमें गोम्मटसार पूजा एवं ग्रंथोंके आदि, मध्य और अन्तमें प्राप्त फुटकर पद्यात्मक रचनाएँ हैं। ग्रन्थोंके अंतमें लिखी गई परिचयात्मक प्रशस्तियाँ प्रशस्तिपरक श्रेणी में आती हैं। पंडित टोडरमलजी की व्याख्यात्मक टीकाएँ दो रूपोंमें पाई जाती हैं : (१) संस्कृत ग्रंथोंकी टीकाएँ (२) प्राकृत ग्रंथोंकी टीकाएँ Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008265
Book TitleMoksh marg prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTodarmal Pandit
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1983
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
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