SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 214
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates १७०] [ मोक्षमार्गप्रकाशक तथा ऐसा जानना – जो कल्पित देव हैं उनका भी कहीं अतिशय, चमत्कार देखा जाता है, वह व्यन्तरादिक द्वारा किया होता है। कोई पूर्व पर्यायमें उनका सेवक था, पश्चात् मरकर व्यन्तरादि हुआ, वहीं किसी निमित्तसे ऐसी बुद्धि हुई, तब वह लोकमें उनको सेवन करनेकी प्रवृत्ति करानेके अर्थ कोई चमत्कार दिखाता है। जगत भोला; किंचित् चमत्कार देखकर उस कार्यमें लग जाता है। जिस प्रकार जिनप्रतिमादिकका भी अतिशय होना सुनते व देखते हैं सो जिनकृत नहीं है, जैनी व्यन्तरादिक होते हैं; उसी प्रकार कुदेवोंका कोई चमत्कार होता है, वह उनके अनुचर व्यन्तरादिक द्वारा किया होता है ऐसा जानना। तथा अन्यमतमें परमेश्वरने भक्तोंकी सहाय की व प्रत्यक्ष दर्शन दिये इत्यादि कहते हैं; वहाँ कितनी ही तो कल्पित बातें कही हैं। कितने ही उनके अनुचर व्यन्तरादिक द्वारा किये गये कार्योंको परमेश्वरके किये कहते हैं। यदि परमेश्वरके किये हों तो परमेश्वर तो त्रिकालज्ञ है, सर्वप्रकार समर्थ है; भक्तको दुःख किसलिये होने देगा? तथा आज भी देखते हैं कि - म्लेच्छ आकर भक्तोंको उपद्रव करते हैं, धर्म-विध्वंस करते हैं, मूर्तिको विघ्न करते हैं। यदि परमेश्वरको ऐसे कार्योंका ज्ञान न हो, सर्वज्ञपना नहीं रहेगा। जाननेके पश्चात् भी सहाय न करे तो भक्तवत्सलता गई और सामर्थ्यहीन हुआ। तथा साक्षीभूत रहता है तो पहले भक्तोंको सहाय की कहते हैं वह झूठ है; क्योंकि उसकी तो एकसी वृत्ति है। फिर यदि कहोगे - वैसी भक्ति नहीं है; तो म्लेच्छोंसे तो भले हैं, और मूर्ति आदि तो उसीकी स्थापना थी, उसे तो विघ्न नहीं होने देना था ? तथा म्लेच्छ-पापियों का उदय होता है सो परमेश्वरका किया है या नहीं ? यदि परमेश्वरका किया है; तो निन्दकोंको सुखी करता है, भक्तोंको दुःख देनेवाले पैदा करता है, वहाँ भक्तवत्सलपना कैसे रहा ? और परमेश्वरका किया नहीं होता, तो परमेश्वर सामर्थ्यहीन हुआ; इसलिये परमेश्वरकृत कार्य नहीं है। कोई अनुचर व्यन्तरादिक ही चमत्कार दिखलाता है - ऐसा ही निश्चय करना। यहाँ कोई पूछे कि - कोई व्यन्तर अपना प्रभुत्व कहता है, अप्रत्यक्षको बतला देता है, कोई कुस्थान निवासादिक बतलाकर अपनी हीनता कहता है, पूछते हैं सो नहीं बतलाता, भ्रमरूप वचन कहता है, औरोंको अन्यथा परिणमित करता है, दुःख देता है - इत्यादि विचित्रता किस प्रकार है ? उत्तर :- व्यन्तरोंमें प्रभुत्वकी अधिकता-हीनता तो है, परन्तु जो कुस्थानमें निवासादिक बतलाकर हीनता दिखलाते हैं वह तो कुतूहलसे वचन कहते हैं। व्यन्तर Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008265
Book TitleMoksh marg prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTodarmal Pandit
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1983
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy