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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates उनके व्यवसाय और आर्थिक स्थितिके सम्बन्धमें कुछ भ्रांतियाँ प्रचलित हैं। कहा जाता है कि “वे आर्थिक दृष्टि से बहुत सम्पन्न थे। उनको पढ़ाने के लिये बनारससे विद्वान् बुलाया गया था। उनकी प्रतिभासे प्रभावित होकर उनके अध्ययन की व्यवस्था अमरचंदजी दीवानने की थी। दीवान अमरचंदजी के कारण उनको राज्य में सम्माननीय पद प्राप्त था। इस राजकर्मचारी पदसे राज्य और प्रजा से हितमें उन्होंने अनेक कार्य किये। उनका प्रखर पाण्डितय राज्यके विद्वानोंको अखरने लगा और कई बार पराजित होनेसे उन पर द्वेष भाव रखने लगे ।" यह बात सम्भव नहीं है कि जिस व्यक्तिको उस युगमें – जब की कोई व्यक्ति घर से बाहर जाना पसन्द नहीं करता और यातायात के समुचित साधन उपलब्ध नहीं थे - अपनी अल्प व्ययमें अपनी आजीविकाके लिये बाहर जाना पड़ा हो, वह आर्थिक दृष्टिसे इतना सम्पन्न रहा हो कि उसकी शिक्षा के लिये उसके माता-पिताने बनारससे न् बुलाया हो। दूसरे यह भी सम्भव नहीं की दीवान अमरचंदजीने उनके पढ़ाने की व्यवस्थाकी हो या उन्हें राज्यमें कोई अच्छा पद दिलाया हो, क्योंकि पंडित टोडरमलजी के दिवंगत होने तक अमरचंदजी दीवान पर प्रतिष्ठित ही नहीं हुए थे। पंडितजीके राजकर्मचारी पद से राज्य और प्रजाके हित में अनेक कार्य करने की बात भी निरी कल्पना ही लगती है। इस सम्बन्ध में कोई भी प्रमाण उपलब्ध नहीं है। राजा की विद्वत्परिषद् में जाने एवं वहाँ वाद-विवाद करने का कोई उल्लेख नहीं मिलते और न यह सब उनकी प्रकृति के अनुकूल ही था। परम्परागत मान्यतानुसार उनकी कुल आयु २७ वर्ष कही जाती रही, परन्तु उनकी साहित्य-साधना, ज्ञान व प्रताप उल्लेखोंको देखते हुए मेरा यह निश्चित मत है कि वे ४७ वर्ष तक अवश्य जीवित रहे। इस सम्बन्धमें साधर्मी भाई ब्र. रायमल द्वारा लिखित चर्चासंग्रह ग्रंथकी अलीगंज (एटा--उ० प्र०) में प्राप्त हस्तलिखित प्रति के पृष्ठ १७३ का निम्नलिखित उल्लेख विशेष द्रष्टव्य हैं : “बहुरि बारा हजार त्रिलोकसारजीकी टीका वा बारा हजार मोक्षमार्गप्रकाशक ग्रंथ अनेक शास्त्रांके अनुस्वारि अर आत्मानुशासनजीकी टीका हजार तीन यां तीना ग्रंथांकी टीका भी टोडरमलजी सैंतालीस बरस की आयु पूर्ण करि परलोक विषै गमन की ।" उनकी मृत्यु-तिथि विक्रम सम्वत् १८२३-२४ के लगभग निश्चित है, अत: उनका जन्म विक्रम १७७६-७७ में होना चाहिए। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008265
Book TitleMoksh marg prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTodarmal Pandit
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1983
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
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