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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates प्रस्तावना डॉ ॰ हुकमचन्द भारिल्ल शास्त्री, न्यायतीर्थ, साहित्यरत्न, एम० ए०, पीएच. डी. टोडरमल स्मारक भवन, ए ४, बापूनगर, जयपुर-४ विक्रमकी उन्नीसवीं शतीके आरंभिक दिनोंमें राजस्थानका गुलाबी नगर जयपुर जैनियोंकी काशी बन रहा था। आचार्यकल्प पंडित टोडरमलजीकी अगाध विद्वत्ता और प्रतिभा से प्रभावित होकर सम्पूर्ण भारतका तत्त्व - जिज्ञासु समाज जयपुरकी ओर चातक दृष्टिसे निहारता था। भारतवर्षके विभिन्न प्रान्तोंमें संचालित तत्त्वगोष्ठियों और अध्यात्मिक मण्डलियोंमें चर्चित गूढ़तम शंकाएँ समाधानार्थ जयपुर भेजी जाती थीं और जयपुरसे पंडितजी द्वारा समाधान पाकर तत्त्व - जिज्ञासु समाज अपनेको कृतार्थ मानता था । साधर्मी भाई ब्र. रायमलने अपनी 'जीवन-पत्रिका' में तत्कालीन जयपुर की धार्मिक स्थितिका वर्णन इसप्रकार किया है : “तहाँ निरन्तर हजारां पुरुष स्त्री देवलोककी सी नांई चैत्यालै आय महा पुन्य उपारजै, दीर्घ कालका संच्या पाप ताका क्षय करै । सौ पचास भाई पूजा करने वारे पाईए, सौ पचास भाषा शास्त्र बांचने वारे पाईए, दस बीस संस्कृत शास्त्र बांचनें वारे पाईए, सौ पचास जनैं चरचा करनें वारे पाईए और नित्यानका सभाके सास्त्रका व्याख्यानविषै पांच सै सात सै पुरुष, तीन सै च्यारि सै स्त्रीजन, सब मिलि हजार बारा सै पुरुष स्त्री शास्त्रका श्रवण करै, बीस तीस बायां शास्त्राभ्यास करै, देश देशका प्रश्न इहां आवै तिनका समाधान होय उहां पहुँचै, इत्यादि अद्भुत महिमां चतुर्थकालवत या नग्र विषै जिनधर्म की प्रवर्त्ति पाईए है।” • पंडित टोडरमल : व्यक्तित्व और कर्तृत्व, परिशिष्ट १ प्रकाशक : पंडित टोडरमल स्मारक टस्ट, ए-४ बापूनगर, जयपुर - ४ ( राजस्थान ) Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008265
Book TitleMoksh marg prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTodarmal Pandit
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1983
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
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