SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 150
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates १०६] [मोक्षमार्गप्रकाशक तथा हम पूछते हैं कि - ब्रह्मा सृष्टि उत्पन्न करते हैं सो कैसे उत्पन्न करते हैं ? एक प्रकार तो यह है कि जैसे - मन्दिर बनाने वाला चूना, पत्थर आदि सामग्री एकत्रित करके आकारादि बनाता है; उसी प्रकार ब्रह्मा सामग्री एकत्रित करके सृष्टिकी रचना करता है। तो वह सामग्री जहाँसे लाकर एकत्रित की वह ठिकाना बतला और एक ब्रह्माने ही इतनी रचना बनायी सो पहले-बादमें बनायी होगी या अपने शरीरके हस्तादि बहुत किये होंगे? वह कैसे है सो बतला। जो बतलायेगा उसीमें विचार करने से विरुद्ध भासित होगा। तथा एक प्रकार यह है - जिस प्रकार राजा आज्ञा करे तदनुसार कार्य होता है, उसी प्रकार ब्रह्माकी आज्ञासे सृष्टि उत्पन्न होती है, तो आज्ञा किनको दी ? और जिन्हें आज्ञा दी वे कहाँसे सामग्री लाकर कैसे रचना करते हैं सो बतला। तथा एक प्रकार यह है – जिस प्रकार ऋद्धिधारी इच्छा करे तदनुसार कार्य स्वयमेव बनता है; उसी प्रकार ब्रह्म इच्छा करे तदनुसार सृष्टि उत्पन्न होती है, तब ब्रह्मा तो इच्छा ही का कर्ता हुआ, लोक तो स्वयमेव ही उत्पन्न हुआ। तथा इच्छा तो परमब्रह्मने की थी, ब्रह्माका कर्त्तव्य क्या हुआ जिससे ब्रह्मको सृष्टिको उत्पन्न करने वाला कहा ? तथा त कहेगा - परमब्रह्मने भी इच्छा की ब्रह्माने भी इच्छा की तब लोक उत्पन्न हुआ, तो मालुम होता है कि केवल परमब्रह्मकी इच्छा कार्यकारी नहीं है। वहाँ शक्तिहीनपना आया। तथा हम पूछते हैं - यदि लोक केवल बनानेसे बनता है तब बनाने वाला तो सुखके अर्थ बनायेगा, तो इष्ट ही रचना करेगा। इस लोकमें तो इष्ट पदार्थ थोड़े देखे जाते हैं, अनिष्ट बहुत देखे जाते हैं। जीवोंमें देवादिक बनाये सो तो रमण करनेके अर्थ व भक्ति करानेके अर्थ इष्ट बनाये; और लट, कीड़ी, कुत्ता, सुअर, सिंहादिक बनाये सो किस अर्थ बनाये? वे तो रमणीक नहीं है, भक्ति नहीं करते, सर्व प्रकार अनिष्ट ही हैं। तथा दरिद्री, दुखी नारकियोंको देखकर अपने जुगुप्सा, ग्लानी आदि दुःख उत्पन्न हों - ऐसे अनिष्ट किसलिये बनाये ? वहाँ वह कहता है - जीव अपने पापसे लट, कीड़ी, दरिद्री, नारकी आदि पर्याय भुगतते हैं। उससे पूछते हैं कि - बादमें तो पापहीके फलसे यह पर्याय हुई कहो, परन्तु पहले लोकरचना करते ही उनको बनाया तो किस अर्थ बनाया ? तथा बादमें जीव पापरूप परिणमित हुये सो कैसे परिणमित हुये ? यदि आपही परिणमित हुए कहोगे तो मालुम होता Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008265
Book TitleMoksh marg prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTodarmal Pandit
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1983
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy