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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates १०२] [मोक्षमार्गप्रकाशक पहले ही थे या नवीन हुए? यदि पहले ही थे तो पहले तो माया ब्रह्मकी थी, ब्रह्म अमूर्तिक है वहाँ वर्णादिक कैसे सम्भव है ? और यदि नवीन हुए तो अमूर्तिकका मूर्तिक हुआ, तब अमूर्तिक स्वभाव शाश्वत नहीं ठहरा। और यदि कहेगा कि - मायाके निमित्त से और कोई होता है, तब और पदार्थ तो तू ठहरता ही नहीं, फिर हुआ कौन ? यदि तू कहेगा - नवीन पदार्थ उत्पन्न होता है; तो वह माया से भिन्न उत्पन्न होता है या अभिन्न उत्पन्न होता है ? माया से भिन्न उत्पन्न हो तो मायामयी शरीरादिक किसलिये कहता है, वे तो उन पदार्थमय हुए। और अभिन्न उत्पन्न हुए तो माया ही तद्रूप हुई, नवीन पदार्थ उत्पन्न किसलिये कहता है ? इस प्रकार शरीरादिक माया स्वरूप हैं ऐसा कहना भ्रम है। तथा वे कहते हैं - मायासे तीन गुण उत्पन्न हुए - राजस, तामस, सात्विक। सो यहभी कहना कैसे बनेगा ? क्योंकि मानादि कषायरूप भावको राजस कहते है, क्रोधादि कषायरूप भावको तामस कहते हैं, मन्दकषायरूप भावको सात्विक कहते हैं। सो यह भाव तो चेतनामय प्रत्यक्ष देखे जाते हैं और मायाका स्वरूप जड़ कहते हो सो जड़से यह भाव कैसे उत्पन्न होगें? यदि जड़के भी हों तो पाषाणादिकके भी उत्पन्न होंगे, परन्तु चेतनास्वरूप जीवों ही के यह भाव दिखते हैं; इसलिये यह भाव मायासे उत्पन्न नहीं हैं। यदि मायाको चेतन ठहराये तो यह मानें। सो मायाको चेतन ठहराने पर शरीरादिक मायासे उत्पन्न कहेगा तो नहीं मानेंगे। इसलिये निर्धार कर; भ्रमरूप माननेसे लाभ क्या है ? तथा वे कहते हैं - उन गुणोंसे ब्रह्मा, विष्णु, महेश यह तीन देव प्रकट हुए सो कैसे सम्भव है ? क्योंकि गुणीसे तो गुण होता है गुणसे गुणी कैसे उत्पन्न होगा ? पुरुषसे तो क्रोध होगा, क्रोधसे पुरुष कैसे उत्पन्न होगा ? फिर इन गुणोंकी तो निन्दा करते हैं, इनसे उत्पन्न हुए ब्रह्मादिकको पूज्य कैसे माना जाता है ? तथा गुण तो मायामयी और इन्हें ब्रह्मके अवतार कहा जाता है सो यह तो मायाके अवतार हुए, इनको ब्रह्मका अवतार* कैसे कहा जाता है ? तथा यह गुण जिनके थोड़े भी पाये जाते हैं उन्हें तो छुड़ानेका उपदेश देते * ब्रह्मा, विष्णु और शिव यह तीनों ब्रह्मकी प्रधान शक्तियाँ हैं। ('विष्णु पुराण' अ० २२-५८) कलिकालके प्रारम्भमें परब्रह्म परमात्माने रजोगुणसे उत्पन्न होकर ब्रह्मा बनकर प्रजाकी रचना की। प्रलयके समय तमोगुणसे उत्पन्न हो काल (शिव) बनकर सृष्टिको ग्रस लिया। उस परमात्माने सत्वगुणसे उत्पन्न हो नारायण बनकर समुद्रमें शयन किया। ('वायु पुराण' अ० ७-६८, ६९) Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008265
Book TitleMoksh marg prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTodarmal Pandit
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1983
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
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