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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates ७०] [मोक्षमार्गप्रकाशक (ग) दुःखका सामान्य स्वरूप अब इस सर्व दुःखका सामान्यस्वरूप कहते हैं। दुःखका लक्षण आकुलता है और आकुलता इच्छा होनेपर होती है। चार प्रकार की इच्छाएँ इस संसारी जीवके इच्छा अनेक प्रकार पायी जाती है : (१) एक इच्छा तो विषय ग्रहणकी है उससे यह देखना-जानना चाहता है। जैसे - वर्ण देखनेकी, राग सुननेकी, अव्यक्तको जाननेकी, इत्यादि इच्छा होती है। वहाँ अन्य कोई पीड़ा नहीं है; परन्तु जब तक देखता-जानता नहीं है तब तक महा व्याकुल होता है। इस इच्छाका नाम विषय है। तथा (२) एक इच्छा कषायभावोंके अनुसार कार्य करनेकी है जिससे वह कार्य करना चाहता है। जैसे - बुरा करनेकी, हीन करनेकी, इत्यादि इच्छा होती है। यहाँ भी अन्य कोई पीड़ा नहीं है, परन्तु जब तक वह कार्य न हो तब तक महा व्याकुल होता है। इस इच्छाका नाम कषाय है। तथा (३) एक इच्छा पापके उदयसे जो शरीरमें या बाह्य अनिष्ट कारण मिलते हैं उनको दूर करनेकी होती है। जैसे - रोग, पीड़ा, क्षुधा आदिका संयोग होनेपर उन्हें दूर करनेकी इच्छा होती है सो यहाँ यही पीड़ा मानता है, जब तक वह दूर न हो तब तक महा व्याकुल रहता है। इस इच्छाका नाम पापका उदय है। इस प्रकार इन तीन प्रकारकी इच्छा होनेपर सभी दुःख मानते हैं सो दुःख ही है। तथा (४) एक इच्छा बाह्य निमित्तसे बनती है; सो इन तीन प्रकारकी इच्छाओंके अनुसार प्रवर्तनेकी इच्छा होती है। इन तीन प्रकारकी इच्छाओंमें एक-एक प्रकारकी इच्छाके अनेक प्रकार हैं। वहाँ कितने ही प्रकारकी इच्छा पूर्ण होनेके कारण पुण्योदयसे मिलते हैं, परन्तु उनका साधन एकसाथ नहीं हो सकता; इसलिये एकको छोड़कर अन्यमें लगता है, फिर भी उसे छोड़कर अन्यमें लगता है। जैसे - किसीको अनेक प्रकारकी सामग्री मिली है। वहाँ वह किसीको देखता है, उसे छोड़कर राग सुनता है, फिर उसे छोड़कर किसीका बुरा करने लग जाता है, उसे छोड़कर भोजन करता है, अथवा देखनेमें ही एकको देखकर अन्यको देखता है। - इसी प्रकार अनेक कार्योंकी प्रवृत्तिमें इच्छा होती है। सो इस इच्छाका नाम पुण्यका उदय है। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008265
Book TitleMoksh marg prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTodarmal Pandit
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1983
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
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