SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates तत्पश्चात् पं० हुकमचंदजी भारिल्ल शास्त्री, न्यायतीर्थ, एम० ए० से स्व० श्री चैनसुखदासजी न्यायतीर्थ एवं पंडित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट के व्यवस्थापकों ने पंडित टोडरमल और उनके मोक्षमार्गप्रकाशक पर विश्वविद्यालयीन स्तर पर शोधकार्य करने का निवेदन किया, जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया। उन्होंने गहरे अध्ययन एवं महत्वपूर्ण शोध-खोज के साथ एक शोध-प्रबन्ध तैयार किया, जिस पर उन्हें इन्दौर विश्वविद्यालय से पीएच ० डी० की उपाधि भी प्राप्त हुई। ' पंडित टोडरमल व्यक्तित्व और कर्तृत्व' नामक उक्त शोध-प्रबन्ध पंडित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट से अगस्त १९७३ में ही प्रकाशित भी हो चुका है। डॉ ० साहब के अनुसंधान और अनुभव का लाभ उठाने की दृष्टि से इसके तृतीय संस्करण के लिये एक सर्वाङ्गीण प्रस्तावना लिखने का उनसे अनुरोध किया गया। फलस्वरूप विक्रम संवत् २०३० में प्रकाशित सात हजार के ही तृतीय संस्करण में उनके द्वारा लिखित सारगर्भित २८ पृष्ठीय प्रस्तावना भी प्रकाशित हो गई थी। शोधकार्य के समय इनके संपादन की कमियाँ डॉ० साहब के ध्यान में विशेष रूप से आई। इसमें लगे अटपटे हैडिंग एवं अनावश्यक लम्बे-लम्बे पैराग्राफ आदि विषय को सहज बोधगम्य करने के बजाय दुरूह कर देते थे। इनकी ओर उन्होंने अनेक बार ध्यान भी दिलाया। विचार करने पर प्रतीत हुआ कि ये हैडिंग और पैराग्राफ आदि टोडरमलजी ने तो लगाये नहीं; मूल में तो विराम, अर्धविराम आदि भी नहीं हैं। तब क्यों न एक बार मूल ग्रन्थ के आधार पर सही संपादन कर इसे प्रकाशित कराया जाय। परस्पर विचार-विनियम कर यह निर्णय लिया गया कि यह कार्य डॉ ० साहिब ही करें तो बहुत अच्छा रहेगा, क्योंकि उन्होंने इसका सभी दृष्टियोंसे विशेष परिचय प्राप्त किया है। फलस्वरूप माननीय डॉ० साहिब के द्वारा सुसंपादित यह संस्करण श्री दि० जैन स्वाध्याय मंदिर द्रस्ट सोनगढ़ द्वारा प्रकाशित किया गया, जिसकी ग्यारह प्रतियाँ मात्र डेढ़ वर्ष में ही समाप्त हो गई। 'इसके संपादन में क्या-क्या किया गया है', इसका स्पष्टीकरण डॉ ० भारिल्ल साहिब ने सम्पादकीय में किया है, तदर्थ उसमें देखें। बार-बार छपाने में प्रूफ संशोधन आदि में अत्यधिक श्रम उठाना पड़ता है और समय भी बहुत लगता है। इस दृष्टि से संपादित इस संस्करण के ऑफसेट तैयार करा लिये गये थे, जिनके द्वारा मुद्रित पाँचवें संस्करण की ५,१०० प्रतियाँ भी मात्र दो वर्ष में ही समाप्त हो गई। पंडित टोडरमल स्मारक द्रस्ट की ओर से प्रकाशित छठवें संस्करण की ५,१२०० प्रतियाँ मात्र १ वर्ष में ही समाप्त हो गई। अब सातवें संस्करण की ५,२०० प्रतियाँ पूनः प्रकाशित की जा रही हैं। इस ग्रन्थ को घर-घर तक पहुँचाने और जन-जनकी वस्तु बनाने का मूल श्रेय स्व ० पूज्य गुरुदेव श्री कानजी स्वामी को है। उन्होंने इस ग्रन्थ पर अनेकों बार प्रवचन किये, जो ‘मोक्षमार्गप्रकाशक की किरणें' नाम से प्रकाशित भी हो चुके हैं। वे अपने प्रवचनों और चर्चा में अनेक बार इस गन्थराज की भूरी-भूरी प्रशंसा करते थे। उनके सान्निध्य में सोनगढ़ में लगने वाले शिविरों का यह मुख्य पाठ्य ग्रंथ रहा है। पूज्य गुरुदेवश्री के उपकार को हम किन शब्दों में व्यक्त करें हमारे पास ऐसे कोई शब्द भी नहीं हैं, जिनके द्वारा उनका उपकार व्यक्त किया जा सके। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008265
Book TitleMoksh marg prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTodarmal Pandit
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1983
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy