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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates इन्द्रियज्ञान... ज्ञान नहीं है है।।१२७ ।। (श्री योगसार, अमितगति आचार्य , जीव अधिकार गाथा-४५ व्याख्या में से) * 'क्षायोपशमिक भाव भी शुद्ध जीव का रूप नहीं है जो ज्ञान आदि के भी रूप में क्षायोपशमिक भाव है वे तत्व-दृष्टि से विशुद्ध-जीव का स्वरूप नहीं है।।१२८ ।। (श्री योगसार, श्री अमितगति आचार्य, जीवाधिकार, गाथा ५८) * जो कुछ इन्द्रियगोचर वह सब आत्मबाह्य। __ शब्दार्थ :- इन्द्रियों द्वारा जो कुछ भी देखा जाता, जाना जाता और अनुभव किया जाता है वह आत्मा से बाह्य , नाशवान तथा चेतनारहित है।।१२९ ।। (श्री योगसार, अमितगति आचार्य, अजीव अधिकार, गाथा ४४) * कुतर्क ज्ञान को रोकने वाला, शांति का नाशक , श्रद्धा को भंग करने वाला और अभिमान को बढ़ाने वाला मानसिक रोग है, जो कि अनेक प्रकार से ध्यान का शत्रु है। अत: मोक्षाभिलाषियों को कुतर्क में अपने मन को लगाना युक्त नहीं, प्रत्युत इसको आत्मतत्व में लगाना योग्य है, जो कि स्वात्मोपलब्धि रूप सिद्धि-सदन में प्रवेश कराने वाला है।।१३०।। ( श्री योगसार, श्री अमितगति आचार्य, मोक्ष अधिकार, गाथा ५२-५३) * वैषयिक ज्ञान सब पौद्गलिक है शब्दार्थ :- जीव का जितना वैषयिक (इन्द्रियजन्य) ज्ञान है वह सब पौद्गलिक माना गया है और दूसरा जो ज्ञान विषयों से परावृत है-इन्द्रियों की सहायता से रहित है वह सब आत्मीय है। * मैं पर को जानता हूँ ऐसी मान्यता में भावेन्द्रिय से एकत्वबुद्धि होती है Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008245
Book TitleIndriya Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSandhyaben, Nilamben
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size3 MB
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