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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates इन्द्रियज्ञान... ज्ञान नहीं है * परन्तु जब ऐसा अनुभूतिस्वरूप भगवान आत्मा-आबाल गोपाल सबके अनुभव में सदा स्वयं ही आने पर भी अनादि बंध के वश पर (द्रव्यों) के साथ स्वयं एकत्व से मूढ़ अज्ञानीजन को ‘जो यह अनुभूति है वही मैं हूँ' ऐसा आत्मज्ञान उदित नहीं होता और उसके अभाव से, अज्ञान का-श्रद्धान गधे के सींग के समान है इसलिए, श्रद्धान भी उदित नहीं होता तब समस्त अन्य-भावों के भेद से आत्मा में निशंक स्थिर होने की असमर्थता के कारण आत्मा का आचरण उदित न होने से आत्मा को नहीं साध सकता। इस प्रकार साध्य आत्मा की सिद्धि की अन्यथा अनुपपत्ति है।।६९ ।। ( श्री समयसार जी, गाथा १७–१८ की टीका में से, श्री अमृतचंद्राचार्य) * साध्य आत्मा की सिद्धि दर्शन-ज्ञान-चारित्र से ही है, अन्य प्रकार से नहीं। क्योंकि-पहले तो आत्मा को जाने कि यह जो जानने वाला अनुभव में आता हे सो मैं हूँ। इसके बाद उसकी प्रतीतिरूप श्रद्धान होता है; क्योंकि जाने बिना किसका श्रद्धान करेगा? तत्पश्चात् समस्त अन्य भावों से भेद करके अपने में स्थिर हो। - इस प्रकार सिद्धि होती है। किन्तु यदि जाने ही नहीं, तो श्रद्धान भी नहीं हो सकता; और ऐसी स्थिती में स्थिरता कहाँ करेगा ? इसलिये यह निश्चय है कि अन्य प्रकार से सिद्धि नहीं होती।।७० ।। (श्री समयसार जी, गाथा १७–१८ का भावार्थ, ___पं. श्री जयचन्द जी छावड़ा) उदयति न नयश्रीरस्तमेति प्रमाणं क्वचिदपि च न विद्मो यति निक्षेपचक्रम्। किमपरमभिदध्मो धाम्नि सर्वकषेऽस्मिन्ननुभवमुषायाते भाति न द्वैतमेव।।९।। * मैं धर्मादि द्रव्य को जानता हूँ, यह अध्यवसान है* Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008245
Book TitleIndriya Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSandhyaben, Nilamben
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size3 MB
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