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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates इन्द्रियज्ञान... ज्ञान नहीं है हुआ और जो ज्ञेय हैं, उनका ज्ञान हुआ, वह अपने कारण से हुआ है। जो ज्ञेयाकार अवस्था में ज्ञायकपने जानने में आया वह अपने स्वरूप को जानने की अवस्था में भी दीपक की तरह कर्ताकर्म का अनन्यपना होने से ज्ञायक ही है। स्वयम् जाननेवाला इसलिए स्वयम् कर्ता और स्वयम् को ही जाना इसलिए स्वयम् ही कर्म। ज्ञेय को जाना ही नहीं है परन्तु ज्ञेयाकार हुए स्वयम् के ज्ञान को जाना है। अहाहा...! वस्तु तो सत्, सहज और सरल है, लेकिन इसका अभ्यास नहीं है इसलिए कठिन पड़ती है, क्या हो ? ।।३४९।। (श्री प्रवचन रत्नाकर, भाग-१, गाथा-६ की टीका ऊपर का प्रवचन, पृष्ठ ९८, पैराग्राफ २) * ज्ञायक ज्ञानरूप परिणमता है, वह ज्ञेयाकार रूप परिणमता है ऐसा है ही नहीं है। यह ज्ञायकरूप दीपक दया, दान, व्रत, भक्ति, पूजा इत्यादि परिणाम जो ज्ञेय हैं उनको जानने के काल में भी ज्ञानरूप रहकर ही जानता है। अन्य ज्ञेयरूप नहीं होता। ज्ञेयों का ज्ञान वह तो ज्ञान की अवस्था है, ज्ञेय की नहीं। ज्ञान की पर्याय ज्ञेय को जाननपने हुई इसलिए उसे ज्ञेयकृत अशुद्धता नहीं है। साक्षात् तीर्थंकर भगवान सामने हों और उस प्रकार के जानने के आकाररूप ज्ञान का परिणमन होवे तो वह ज्ञेय के कारण हुआ है-ऐसा नहीं है। उस समय ज्ञान का परिणमन स्वतंत्र अपने से ही है, पर के कारण नहीं हुआ है। भगवान को जानने के काल में भी भगवान जानने में आये हैं ऐसा नहीं है। परन्तु वास्तव में तत् सम्बन्धी अपना ज्ञान जानने में आया है। आत्मा जाननहार है-वह जानता है, तो वह पर को जानता है कि नहीं ? तो कहते हैं कि पर को जानने के काल में भी स्व का परिणमन-ज्ञान का परिणमन अपने से हुआ है, पर के कारण नहीं। यह शास्त्र के शब्द जो ज्ञेय है उस ज्ञेय के आकाररूप ज्ञान होता है परन्तु वह ज्ञेय है इसलिए यहाँ ज्ञान का १८१ *इन्द्रियज्ञान केवलज्ञान में बाधक है* Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008245
Book TitleIndriya Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSandhyaben, Nilamben
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size3 MB
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