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________________ हस्तलिखित प्रति प्रस्तुत ग्रन्थना संशोधनमाटे पूज्यपाद प्रवर्त्तक श्री १००८ श्री कान्तिविजयजी महाराजना वडोदराना हस्तलिखित जैन ज्ञानभंडारनी नवी लखापल मात्र एक ज प्रतिनो आधार लेवामां आव्यो छे । आ प्रतिने, लींबडीना जैन ज्ञानभंडारनी कोई बिद्वाने सुधारेल प्राचीन प्रतिना आधारे में सुधारी हती । आ उपरांत प्रस्तुत ग्रंथने सुधारवा माटे आवश्यक निर्युक्ति, पिण्डनिर्युक्ति, ओघ नियुक्ति, व्यवहारभाष्य, बृहत्कल्पभाष्य, पंचकल्पभाष्य वगेरे ग्रन्थोनो पण उपयोग करवामां आव्यो छे अने जेम बने तेम प्रस्तुत ग्रन्थने शुद्ध करवा माटे प्रयत्न करवामां आव्यो छे । ॥ अर्हेम् ॥ प्रस्तावना Comprasics प्रस्तुत ग्रन्थनी हस्तलिखित प्रतिमां अमे बे खास विशेषताओ जोई छे । एक परसवर्णविषयक अर्थात् अब्भङ्गिय देन्तो होन्ति अणहिया सेन्ते हि आ प्रमाणे घणे ठेकाणे प्राचीन समयथी करेला परसवर्णो छे । अने बोजी विशेषता -- ज्यां ज्यां प्रस्तुत ग्रन्थनी जे जे सूत्रगाथानुं भाष्य समाप्त थाय छे त्यां ते ते गाथाना अंकने ताडपत्रीय प्रतोमां आवता पत्रांकदर्शक अक्षरांको द्वारा दर्शाववामां आव्यो छे । उपरोक्त परसवर्ण अने गाथादर्शक अक्षरांको आखा ग्रन्थमां करवामां आव्या हशे परंतु लेखकादिनी अज्ञानताने लोधे केटलेक ठेकाणे आ वस्तु कायम रही छे अने केटलेक ठेकाणे एमां परिवर्तन पण थयुं छे । अमे, आ बन्नेय वस्तुओं अमारा पासेनी प्रतिमां जे प्रमाणे मळी छे ते रोते कायम ज राखी छे । आथी अमे पटलुं ज जणाववा इच्छीए छोए के आ ग्रंथमां परसवर्ण वगेरे जे छे ते अमे हस्तलिखित प्रतिने आधारे ज करेला छे । Jain Education International जीतकल्पभाष्य - प्रस्तुत भाष्यग्रंथ प कल्पभाष्य, व्यवहारभाष्य, पंचकल्पभाष्य, पिण्डनिर्युक्ति वगेरे ग्रन्थोमी गाथाना For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008071
Book TitleAgam 38 Chhed 05 Jitkalpa Sutra
Original Sutra AuthorJinbhadragani Kshamashraman
AuthorPunyavijay
PublisherBabalchand Keshavlal Modi
Publication Year1994
Total Pages243
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Ethics
File Size15 MB
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