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________________ प्रकारांत अने उकारांत नान्यतर अंगनां, हतीयाथी सप्तमी सुधीनां बघां रूपोनी साधना इकारांत अने उकारांत नरजाति अंगनां रूपोनी समान छे अने प्रथमा, द्वितीया तथा संबोधननां रूपोनी साधना, अकारांत नान्यतर उंगनां रूपोनी जेवी छ: वारि (वारि) १-२ बारि+म् वारि (वारि)......वारिणि वारीणि) पारिवारीई वारीणि वारि+ई-वारी) सं० वारि ! ( वारि !) (जुओ पाठ छटानो प्रारंभ) महु (मधु ) १-२ महु+म्-महुं (मधु)...महु+णि-महूणि) महु महूई (मधूनि) महु-मह ) सं० महु ! (मधु !) ,, ,, (") चतुर्थीना एकवचनमां वारिणे, वारिस्स. महुणे, महुस्स रूपो समझवानां छे पण 'वारये' के 'महवे' रूपो समझवानां नथी. इकारांत अने उकारांत नाम (नरजाति) मुणि (मुनि) मुनि-मनन करनार- । रिसि । (ऋषि) रुषि मौन राखनार संत इसि । सउणि (शकुनि) शकुनि-पक्षी भूवइ (भूपति) भू-पृथ्वी-नो पर (पति) पति-स्वामी-धणी पति-भूपति-भूपत-राजा गणवइ (गणपति) गणोनो पति -गणपति घरवरी (गृहपति) घरनो पति अमुणि-(अमुनि) मुनि नहि ते गहवा -बडबड करनार मालिक
SR No.007832
Book TitlePrakrit Margopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGurjar Granthratna Karyalay
Publication Year1943
Total Pages294
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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