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________________ जिइन्दिय (जितेन्द्रिय) इन्द्रियो ऊपर जय मेळवनार निरद्वय (निरर्थक) निरर्थक-नकामुं धीर (धीर) धीर-धीरजवाएं अणारिय (अनार्य) अनार्य - आर्य नहि ते अनाडी पिय (प्रिय) प्रिय - वहालुं दुष्पूरिय (दुष्पूर्य) मुश्केलीथी पूराय - भराय-तेवुं सयल (सकल) सकल - सघळु कुसल (कुशल) कुशळ - चतुर भास (भाष्) भाखवु -: -भाषण कर प+ माय् (प्र+माद्य) प्रमाद करवो जूर (जुर्) जूखं तिप्पू (तिप्) टपकवु - गळवु पिटट् (पिट्ट) पीटवुं - मावुं-पीडवुं परि+तप्पू (परि+तप्य) परिताप पामवो - दुःखी थवं समा+यर् (सम्+आ+चर) आ चरण कर अणु+तप्प ( अनु + तप्य) अनुताप करवो-पश्चात्ताप करवो. દર प+यय ( प्र + यत् ) प्रयत्न करवो. अभि +नि+क्खम् (अभि+ निष्+ क्रम् ) हमेशने माटे घरथी नी कळवु - संन्यास लेवो दुरतिक्कम ( दुरतिक्रम) न मटे बुं मड ( (मृत) मृत - मरेलुं मय से (श्रेष्ठ) श्रेष्ठ - उत्तम दंत ( दान्त) जेणे तृष्णाने दमी छे ते, दमेलं - शांत कड ( ( कृत) करेलुं कय । विविह (विविध) विविध जात जनुं धातु परिहर ( परि + हरं ) परहखं - तजवुं तच्छ् (तक्षू ) तारावुं -छोडंपातळं कर कप्प् (कल्प) खपवुं - उचित होवु वज्ज् (वर्ज) वर्जवुं - छोडवु चय् (त्यज) तजवुं चर् (चर) चरवुं, चालवु सं+जल् (सं+ज्वल) जळवु - तप - क्रोध करतो अभिप्पत्थ ) ( अभि + प्र+अर्थ ) अभिपत्थ । प्रार्थना करवी अभि + जाण ( अभि+जाना ) अहिजाणवु-ओळखं खण ( खन् ) खवु - खोदवुं परि+च्चय् (परि+त्यज) परित्याग करवो
SR No.007832
Book TitlePrakrit Margopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGurjar Granthratna Karyalay
Publication Year1943
Total Pages294
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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