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________________ छत्त (छत्र) छत्र-छत्री । साय। ४ (सात) शाता-सुख बम्हचेर (ब्रह्मचर्य) ब्रह्मचर्य - बंभचेर सदाचारवाळी वृत्ति गुरुकुल (गुरुकुल) सदाचारवाळा गुरुओ ज्यां रहे छे ते स्थान ___ ब्रह्ममां परायण रहे ते सुत्त (सूत्र) सूत्र-सूतर, सूत्ररूप सञ्च (सत्य) सत्य-साधु टुकुं वाक्य अव्यय अलं ६२(अलम् ) बस-सयु-थयु एगया (एकदा)एकवार-एक वखत तओ। आ। (ततः) तेथी, त्यारपछी धुवं (ध्रुवम् ) ध्रुव-चोक्कस अज्झत्थं। (अध्यात्म) आत्माने SA (उपरि) उपर अज्झप्पं लगतुं-अंदरनुं सततं ( सततम् ) सततमुसं ) सयय निरंतर मुसा ए (मृषा) मिथ्या-खोटं ६३इइ) इअ | (इति) इति-ए प्रमाणे, मोसा) त्ति समाप्तिसूचक खु (खल) निश्चय इति) विशेषण अवज (अवद्य) अवद्य-न वदी-कही। सुत्त (सुप्त) सुतेलु -शकाय तेवु काम-पाप-दोष सुत्त (सूक्त) सूक्त-सारी उक्तिअणवज (अनवद्य) पापरहित सुभाषित अनवज वद्धमाण (वर्धमान) वधतुं दरणुचर ( दुरनुचर ) जेनु गढिय (गृद्ध) अतिशय लालचु आचरण कठण लागे ते । अहम (अधम)अधम-हलकुं-नीच ६२ 'अलं'नी साथे आवता नामने त्रीजी विभक्ति लागे छः अलं झुद्धणं. अलं तवेणं. ६३ 'इति'ना उपयोग माटे जुओ टिप्पण ५८ मुं.
SR No.007832
Book TitlePrakrit Margopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGurjar Granthratna Karyalay
Publication Year1943
Total Pages294
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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