SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 43
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ૨૮ २९अपि) (अपि) ऊलटुं, पण. अवि+हेइ-अविहेइ३०) ढांके अवि अपि हेइ-अपिहेह के पि+हेइ-पिहेह ) को+विम्कोविकोई को+इ-कोइ पिण किम् अवि-किमवि-कांई पण जं+पि-जंपि-जे पण ऊ) (उप) पासे. उव+गच्छद-उवगच्छइ-पासे जाय छे. ओ ऊ ज्झायो-ऊज्झायो ) उव) ओज्झिायो-ओज्झायो उपाध्याय उव+ज्झायो-उवज्झायो) आ-मर्यादा, उलटुं. आ+वसइ-आवसइ-अमुक मर्यादामां __ रहे छे. आ+गच्छइ आगच्छद् आवे छे. उपसर्गना अर्थों नियत नथी. कोइ उपसर्ग, घातुना मूळ अर्थ करतां विपरीत अर्थ बतावे छे. कोइ, ए मुळ अर्थने अनुसरे छे, कोइ, एमां थोडो वधारो देखाडे छे अने कोइ, मात्र शोभा माटे ज वपराय छे-धातुना अर्थमां कशो फेरफार बतावतो नथी. 'अपि' उपसर्ग छे अने 'पण' अर्थमां अव्यय पण छे एथी 'अपि' साथेना उदाहरणोमां तेनो बन्ने जातनो उपयोग बताव्यो छे. २९ 'अवि' 'वि' के 'इ' अव्यय, शब्दना स्वरांत अंगनी पछी जोडाय छे अने शब्दना व्यजनांत अंगनी पछी 'अवि' के 'पि' नो नो उपयोग थाय छे. जेमकेः-को+अवि-को अवि. को वि. को+इ-कोइ. होइ+अवि-होइ अवि, होइ वि. किम्+अवि-किमवि. किम्+पि-किपि (जुओ टि० ८मुं.) ३० अपिदधाति, पिदधाति.
SR No.007832
Book TitlePrakrit Margopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGurjar Granthratna Karyalay
Publication Year1943
Total Pages294
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy