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________________ ८१४ विसेसचुण्णि [गणंतरोवसंपयपगयं आलोयणविही भण्णइ पासत्थाईमुंडिएँ, आलोयण होइ दिक्खपभिई तु । संविग्गपुराणे पुण, जप्पभिई चेव ओसण्णो ॥५४६९॥ "पासत्थाई०" गाहा । कण्ठ्या ।। [सुत्तं] गणावच्छेइए य गणादवक्कम्म इच्छेज्जा अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, णो से कप्पति गणावच्छेइयत्तं अणिक्खिवित्ता संभोगपडियाए जाव विहरित्तए; कप्पति से गणावच्छेइ अत्तं णिक्खिवित्ता जाव विहरित्तए । णो से कप्पइ अणापुच्छित्ता आयरियं वा जाव विहरित्तए; कप्पति से आपुच्छित्ता आयरियं वा जाव विहरित्तए । ते य से वितरंति एवं से कप्पति अन्नं गणं संभोगपडियाए जाव विहरित्तए; ते य से नो वितरंति एवं से णो कप्पति जाव विहरित्तए । जत्थुत्तरियं धम्मविणयं लभेज्जा एवं से कप्पति अन्नं गणं सं० [संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं ] जाव विहरित्तए; जत्थुत्तरियं धम्मविणयं नो लभेज्जा एवं से णो कप्पति जाव विहरित्तए ॥४-२४॥ आयरिय उवज्झाए य गणादवकम्म इच्छेज्जा अन्नं गणं संभोग-पडियाए जाव विहरित्तए, णो से कप्पति आयरिय उवज्झायत्तं अणिक्खिवित्ता अन्नं गणं सं० [संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं ] जाव विहरित्तए; कप्पति से आयरियउवज्झायत्तं णिक्खिवित्ता जाव विहरित्तए । णो से कप्पति अणापुच्छित्ता आयरियं वा जाव विहरित्तए; कप्पति से आपुच्छित्ता आयरियं वा जाव विहरित्तयए । ते य से वितरंति एवं से कप्पति जाव विहरित्तए; ते य से णो वितरंति एवं से णो कम्पति जाव विहरित्तए । जत्थुत्तरियं धम्मविणयं लभेज्जा एवं से कप्पति जाव विहरित्तए; जत्थुत्तरियं धम्मविणयं नो लभेज्जा एवं से णो कप्पति जाव विहरित्तए ॥४-२५॥ एमेव गणावच्छे, गणिआयरिए वि होइ एमेव । णवरं पुण णाणत्तं, एते नियमेण गीया उ॥५४७०॥
SR No.007787
Book TitleKappasuttam Vhas Vises Chunni Sahiyam Part 02
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami, Sanghdasgani Kshamashraman
Author
PublisherShubhabhilasha Trust
Publication Year2016
Total Pages423
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bruhatkalpa
File Size4 MB
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