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________________ XXXi हेतु इस्तेमाल किया हुआ शब्द है। इसलिए इस वाक्य के द्वारा गुरुको विनय-पूर्वक यह पूछा जाता है कि आपको ग्लानि तो नहीं हुई ना ? आप शांति में हो ? किसी तरहकी पीड़ा तो नहीं है ? गुरु कहते है - ऐसा ही है : अर्थात् में अल्प ग्लानिवाला एवं तन से अबाध हूँ| ४.यात्रा-पृच्छा-स्थान जत्ता भे? - आपकी संयमयात्रा (सुख-पूर्वक) बसर होती है ? संयमका निर्वाह वह ‘भावयात्रा’ है, एवं भावयात्रा' सच्ची 'यात्रा' है। इसलिए 'यात्रा' शब्दसे यहाँ संयमका निर्वाह समझना है।इन दो पदों के तीन वर्ण खास ढंग से उच्चारित किये जाते है | जो इस तरह है: ज- अनुदात्त स्वरसे बोला जाता है । एवं उस वक्त गुरुकी चरण स्थापनाको दोनो हाथोंसे स्पर्श किया जाता है। त्ता - स्वरित स्वरसे बोला जाता है। एवं उस वक्त चरणस्थापना पर से उठाये हुए हाथ (रजोहरण एवं ललाटके बीच रखे जाते) सीधे किये जाते है। भे- उदात्त स्वरसे बोला जाता है एवं उस वक्त नजर गुरु के सामने रखकर दोनो हाथ ललाट पर लगाये जाते है। स्वरके तीन भेद है : अनुदात्त,स्वरित एवं उदात्त ।' उसमें जो उँची आवाज में बोला जाये वह 'उदात्त', हलके से बोला जाये वह 'अनुदात्त' एवं मध्यम रुप से बोला जाय वह 'स्वरित। गुरु इन प्रश्नोनों का उत्तर देते हुए सामने से पूछते है कि तुझे भी संयमयात्रा' (सुख-पूर्वक) बसर होती है ?
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
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