SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 402
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तीर्थंकर परमात्माने दिखाई हुई 'संवत्सरी प्रतिक्रमण' की साधना किस तरह किस भावसे करनी चाहिए, उसकी संपूर्ण विधि और समझसे परिपूर्ण पुस्तकका प्रयत्न खुब खुब अनुमोदनीय है। ऐसे सूत्रोकी अद्भुत रचना और उसका भाववैभव समग्र जीवो के लिए अमृतक्रियारुप बने और आत्महित साधकर सर्वजीवमोक्ष मार्गके साधक बने / पू. हितधर्माश्रीजी म.सा. 'प्रतिक्रमण 'चित्त और आत्माकी शुध्धिके लिए है / जिस तरह शरीरको पौष्टिक भोजनकी आवश्यकता है, उसी तरह आत्मिक गुणोको पुष्ट करनेके लिए प्रतिक्रमणकी आवश्यकता है / ऐसे प्रतिक्रमणके द्वारा राग-द्वेषादि कषायोकी मंदता, वासनावृत्तिमें क्षीणता और चित्तकी निर्मलता प्राप्त होती है / कारण प्रतिक्रमण सूत्रोंमें देव-गुरुकी स्तुति, वंदना, ध्यान, श्रुतज्ञानकी उपासना, क्षमापना आदिकी उत्तम और मंगलदायी व्यवस्था है। ईसलिए चित्तकी विशुध्धिके लिए, पुराने कर्मोको क्षय करनेके लिए और चारित्रगुणकी उत्तरोत्तर विशुध्धिके लिए प्रतिक्रमण आवश्यक है। पद्मश्री डो.कुमारपाल देसाई 'संवत्सरी प्रतिक्रमण' मतलब वडीलजनोंके आग्रह से ढाई घंटा एक स्थान पर बैठके सिर्फ सूत्रोका श्रवण मात्र नहि , परंतु हर एक सूत्र और क्रिया, विधिका अर्थ और उस क्रिया का विवरण समझमें आये तो यह प्रतिक्रमण, कर्मनिर्जरा, पश्चाताप और क्षमाका त्रिवेणी संगम है / उसकी प्रतिती हर जिज्ञासुको अवश्य होगी ।ईस सत्यका दर्शन यह पुस्तकसे होता है / डो. धनवंत शाह 'प्रबुध्धजीवन ' - तंत्री 'दिपक फार्म', गोत्री रोड, वडोदरा - 390021. फोन नं : +91-265-2371410
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy