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________________ (ये तीनों चीजें अपने भीतर आये इसलिए उसका विस्तृत - न्यास किया जाता है ।) ९) अब उपरसे विपरीत रूप में हथेलीकी कलाई से हाथकी ऊँगली तक मुहपत्ति घसीटकर ले जाओ और बोलो कि.... १७- ज्ञान-विराधना, १८- दर्शन-विराधना, १९- चारित्रविराधना परिहरुं। चित्र नं -६ (ये तीनों चीजें बाहर निकालनी है, इसलिए उसका घीसकर प्रमार्जन किया जाता है।) २०- मनगुप्ति,२१- वचनगुप्ति, २२-कायगुप्ति आदुई। (ये तीनों चीजें अपने भीतर आ जाये इसलिए उसका विस्तृत - न्यास किया जाता है।) १०) अब मुहपत्तिको हथेलीकी कलाई से हाथकी ऊँगली तक घसीटकर ले जाओ और बोलो कि....२ ३-मनदंड २४-वचनदंड,२५-कायदंड परिहीं। (ये तीनों चीजें बाहर निकालनी है, इस लिए उसका प्रमार्जन किया जाता है ।) चित्र नं -६ शरीर पडिलेहण के वक्त सोचने के २५ बोल (यह बोल के वक्त अभ्यंतर प्रमार्जन करनी होनेकी वजहसे हर बार प्रमार्जनकी प्रक्रियाकी जाती है।) १) अब ऊँगली में (अंतरे में) फँसाई हुई मुहपत्तिको बाये हाथके पृष्ठ भाग पर उपरकी ओर से नीचे तक झटककर प्रमार्जना करते हुए मनमें बोलें कि....
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
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