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________________ xviii परस्पर तीन तीनके अंतराल पर होते है, वह इस तरह पहले हथेली से चढ़ते ३ पक्खोडा करना, तत्पश्चात् हथेली के उपरसे उतरते ३ अक्खोडा करना, तत्पश्चात् पुनः ३ पक्खोडा, पुनः ३ अक्खोडा, पुनः ३ पक्खोडा, पुनः ३ अक्खोडा, उस तरह अनुक्रमसे ९ पक्खोडा एवं ९ अक्खोडा परस्पर अंतरसे गीने जाते है । या तो फिर पक्खोडा के अंतराल पर अक्खोडा ऐसा गीना जाता है । ८- सुदेव ९- सुगुरु १०- सुधर्म आदरं । ६) सुदेव, सुगुरु के प्रति श्रद्धा हमारे भीतर जन्मे एसी इच्छा है। इसलिए मुहपत्तिको अंदाजित उँगलीके अग्र भागमें रखनी चाहिए एवं उस वक्त 'सुदेव' बोलना और फिर दूसरे स्पर्श पर मुहपत्ति को हथेलीके मध्य हिस्से तक लाकर उस वक्त 'सुगुरु' बोलना एवं तीसरे स्पर्श के समय मुहपत्तिको हाथ की कलाई तक लाकर उस वक्त 'सुधर्म' बोलो। जिससे आगे कोहणी तक पहुँचते पहुँचते 'आदरुँ' इतने शब्द बोलो मुहपत्ति को हाथका स्पर्श नहीं होना चाहिए चित्र नं -६ ७) अब उपरकी प्रक्रियासे उल्टे रुप में मुहपत्तिको कलाईसे ऊँगलीकी नोक तक घसीट कर ले जाओ और मनमें बोलो कि ... ११ - कुदेव, १२ - कुगुरु, १३ - कुधर्म परिहरं । (यह एक प्रकारकी प्रमार्जन विधि हुई, इसलिए उसकी क्रिया भी एसी रखी गई है।) चित्र नं - ६ ८) अब मुहपत्ति तीन स्पर्शसे ऊँगलीकी नोकसे हथेलीकी कलाई तक मुहपत्ति हल्की सी उपर रखकर भीतर लो एवं बोलो कि ....१४ज्ञान, १५- दर्शन, १६ - चारित्र आदरुं । चित्र नं - ६
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
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