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________________ श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित २७५ जाव अरिहंताणं भगवंताणं, नमुक्कारेणं न पारेमि (४) ताव कायं, ठाणेणं, मोणेणं, झाणेणं, अप्पाणं, वोसिरामि (५) सिवा श्वास लेना, श्वास छोडना, खाँसी आना, छींक आना, जम्हाई आना, डकार आना, अधोवायु छूटना, चक्कर आना, पित्त-विकार से मूर्छा आना, सूक्ष्म अंग-संचार होना, सूक्ष्म कफ संचार होना, सूक्ष्म दृष्टि-संचार होना, इत्यादि अपवाद के (सिवा), मुझे कायोत्सर्ग (काया के त्याग से युक्त ध्यान) हो, वह भी भग्न नहीं, खण्डित नहीं ऐसा कायोत्सर्ग हो । जहाँ तक (नमो अरिहंताणं बोल) अरिहंत भगवंतों को नमस्कार करने द्वारा (कायोत्सर्ग) न पारूं (पूर्ण कर छोडूं), तब तक स्थिरता, मौन व ध्यान रखकर अपनी काया को वोसिराता हूं (काया को मौन व ध्यान के साथ खडी अवस्था में छोड देता हूं)। (चार लोगस्स संपूर्ण अथवा सोलह नवकारका काउस्सग्ग करके 'नमोहर्त' कहके 'बृहत् शांति का पाठ कहना । बाकी सब शांतिपाठ सुनके 'नमो अरिहंताणं' कहके काउस्सग्ग पार ।) २४ तीर्थंकरोके नाम स्मरणकी स्तुति लोगस्स उज्जोअगरे; धम्म तित्थयरे जिणे। अरिहंते कित्तइस्सं चउवीस पि केवली (१) उसभ, मजिअं च वंदे, संभव, मभिणंदणं च सुमई च; पउमप्पह, सुपासं, जिणं च चंदप्पहं वंदे (२) सुविहिं च पुष्पदंतं, सीयल, सिज्जंस, वासुपूज्जं च।
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
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