SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 329
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७४ श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित (चरवलावाले खडे होकर काउस्सग्ग करे) देव-गुरुको पंचांग वंदन इच्छामि खमासमणो ! वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए, 5 मत्थएण वंदामि (१) मैं इच्छता हूं हे क्षमाश्रमण ! वंदन करने के लिए, सब शक्ति लगाकर व दोष त्याग कर मस्तक नमाकर मैं वंदन करता हूं | (१) - इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! दुखक्खय कम्मक्खय निमित्तं काउस्सग्ग करे ? 'इच्छं' दुक्खक्खय कम्मक्खय निमित्तं करेमि काउस्सग्गं. हे भगवन् ! दुष्कर्म और कुकर्मके निमित्त काउस्सग करूं ? आज्ञा मान्य है। दुष्कर्म और कुकर्मके निमित्ते काउस्सग्ग करता हुँ। काउस्सग्गके १६ आगार (छूटका) वर्णन र अन्नत्थ ऊससिएणं, नीससिएणं, - खासिएणं, छीएणं, जंभाइएणं, उड्डएणं, वायनिसग्गेणं, भमलीए, पित्तमुच्छाए (१) सुहुमेहिं अंग संचालेहिं, सुहुमेहिं खेल संचालेहिं, सुहुमेहिं दिहि संचालेहिं, (२) एवमाइ एहिं आगारेहिं, अभग्गो अविराहिओ, हुज्ज मे काउस्सग्गो (३)
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy