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________________ २५० श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित श्री शांतिनाथकी स्तुति (निवास स्थान, नगर, परिवार और ऋद्धिका वर्णन) कुरुजणवय हत्थिणाउर नरीसरो पढमं, तओ महाचक्कवट्टि भोऐ, महप्पभावो, जो बावत्तरी पुरवर सहस्स वर नगर निगम जणवयवई, बत्तिसा रायवर सहस्साणुयाय मग्गो। चउदस वररयण नव महानिहि चउसट्ठि सहस्स पवर जुवईण सुन्दरवई, चुलसी हय गय रह सयसहस्ससामी, छन्नवइ गाम कोडी सामी, आसी जो भारहमि भयवं | (११) वेढओ तं संतिं संतिकरं, संतिण्णं सव्वभया। संतिं थुणामि जिणं, संतिं विहेउ मे | (१२) रासानंदिअयं जो भगवान् प्रथम भरतक्षेत्रमें कुरुदेशके हस्तिनापुरके राजा थे और तदनन्तर महाचक्रवर्तीके राज्यको भोगनेवाले महान् प्रभाववाले हुए, तथा बहत्तर हजार मुख्य शहर और हजारों नगर तथा निगमवाले देशके अधिपति बने; जिनके मार्गका बत्तीस हजार श्रेष्ठ राजाओं अनुसरण करते थे, और जो चौदह रत्न, नव महानिधि, चौंसठ हजार सुन्दर स्त्रियोंके स्वामी बने थे, तथा चौरासी लाख घोड़े, चौरासी लाख हाथी, चौरासी लाख रथ और छियानबे करोड़ गाँवोंके अधिपति बने थे, तथा जो मूर्तिमान् उपशम जैसे, शान्ति करनेवाले, सर्व भयोंको अच्छी तरह पार किए हुए और रागादि शत्रुओं को जीतनेवाले थे, उन श्री शान्तिनाथ भगवान्की मैं शान्तिके निमित्त स्तुति करता हूँ | (११-१२)
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
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