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________________ xiii मुहपत्तिकी पडिलेहणाका विवेचन और विधिका मार्गदर्शन वृद्धसंप्रदाय के अनुसार इस 'बोल' का उच्चारण मनमें करना होता है और उसका अर्थ सोचना है। जिसमें 'उपादेय' एवं 'हेय' चीजोंका विवेक अत्यंत विशेषताके साथ किया गया है। जैसे कि यह प्रवचन तीर्थ होनेसे प्रथम उसके अंग समान ‘सूत्रकी एवं अर्थकी तत्त्व के द्वारा श्रद्धा करनी है' अर्थात् सूत्र एवं अर्थ उभयको तत्त्वरुप-सत्यरुप स्वीकार करके उसमें श्रद्धा रखनी चाहिए। और उस श्रद्धामें अंतरायरुप सम्यक्त्व मोहनीय, मिश्रमोहनीय और मिथ्यात्व मोहनीय आदि रागोको परिहरना है। जिसमें पहले कामरागको, फिर स्नेहरागको एवं अंत में द्दष्टिरागका त्याग करना होता है। क्योंकि यह राग त्याग किये बिना सुदेव, सुगुरु एवं सुधर्मकी महत्ता सोचकर उसका आचरण करनेकी भावना है और कुदेव, कुगुरु तथा कुधर्मको परिहरनेका द्दढ संकल्प करना है, अगर इतना हो जाये तो ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र का पालन करना है, जिसका दूसरा नाम ‘सामायिक है उसकी साधना यर्थाथ हो सकती है। ऐसी आराधना करने के लिए ज्ञान विराधना, दर्शन विराधना एवं चारित्र विराधना को परिहरनेकी आवश्यकता है। ___ संक्षेप में मनगुप्ति, वचनगुप्ति एवं कायगुप्ति आचरण करने योग्य है, इसलिए उपादेय है और मनदंड, वचनदंड एवं कायदंड परिहरने योग्य है इसलिए हेय है। इस तरह उपादेय' एवं 'हेय' के बारे में जो चीजें खास परिहरनेके समान है और
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
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