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________________ १५२ श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित नियम का सेवन करूं, (तब तक) त्रिविधि से द्विविध (यानी) मनसे, वचन से, काया से, (सावद्य प्रवृत्ति) प्रवृति न करूंगा, न कराऊंगा । हे भगवंत ! (अब तक किये) सावद्य का प्रतिक्रमण करता हूं, (गुरु समक्ष) गर्दा करता हूं, (स्वयं ही) निंदा करता हूँ, (ऐसी सावद्य-भाववाली) आत्मा का त्याग करता हूं | (१) ___ (चरवला हो तो खडे होकर, आधा अंग झुकाकर हाथ जोडकर बोले, नहीं तो बैठ के बोले) अतिचार निमित्ते काउस्सग्ग इच्छामि ठामि काउस्सग्गं, जो मे संवच्छरीओ अइआरो कओ काइओ, वाइओ, माणसिओ, उस्सुत्तो, उम्मग्गो अकप्पो, अकरणिज्जो, दुज्झाओ, दुविचिंतिओ, अणायारो, अणिच्छिअव्वो, असावग पाउग्गो, नाणे, दंसणे, चरित्ता-चरित्ते, सुए, सामाइए, तिण्हं गुत्तीणं, चउण्हं कसायाणं, पंचण्ह मणुव्वयाणं, तिण्हं गुण व्वयाणं, चउण्हं सिक्खा वयाणं, बारस विहस्स सावग घम्मस्स, जं खंडिअंजं विराहिअं, तस्स मिच्छा मि दुक्कडं || मैं कायोत्सर्ग में स्थिर होना चाहता हूँ | काया द्वारा, वाणी द्वारा, मन
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
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