SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 206
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित १५१ उपचारों से या सर्व प्रकार के धर्म अतिक्रमण से हुए आशातना द्वारा मुझसे जो कोई अतिचार हुआ हो, हे क्षमाश्रमण ! उनका मैं प्रतिक्रमण करता हूँ, निंदा करता हूँ, गर्दा करता हूँ एवं (अशुभ प्रवृत्तियों वालीं) आत्मा का त्याग करता हूँ। देवसिअ आलोइ पडिक्कता __ इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! K a संवच्छरीअं पडिक्कम्म ? (पडिकम्मामि) ? सम्म पडिक्कमेह, इच्छं दिवस संबंधी दुष्कृत्योकी आलोचनाका प्रतिक्रमण किया है अब हे भगवंत, संवत्सरी (वार्षिक) संबंधी प्रतिक्रमण कराओ । गुरु कहते है - सम्यग्रीत से प्रतिक्रमण करो। शिष्य कहता है - हाँ ! सम्यग् रीतसे प्रतिक्रमण करता हुँ । सामायिक महासूत्र करेमि भंते ! सामाइयं! सावज्जं जोगं पच्चक्खामि | जाव नियमं पज्जुवासामि, दुविहं, तिविहेणं, मणेणं, वायाए, काएणं न करेमि न कारवेमि तस्स भंते ! पडिक्कमामि, निंदामि, गरिहामि, अप्पाणं वोसिरामि। (१) हे भगवंत ! मैं सामायिक करता हूं | प्रतिज्ञाबद्धत्त्तासे पापवाली प्रवृत्ति का त्याग करता हूं । (अतः) जब तक मैं (दो घडी के)
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy